________________
प्रादर्श एवं अभूतपूर्व व्यक्तित्व
श्री सुमत प्रकाश जैन, दिल्ली
वैसे तो परम श्रद्धेय, श्रावक-शिरोमणि, तीर्थभक्त, विमर्श करने के बाद उन्होंने न केवल मन्दिर जी के जीर्णोदानवीर स्वर्गीय साह शान्तिप्रसादजी से मेरा परिचय द्वार बल्कि कुछ नवीनीकरण की योजना के लिए अपनी काफी समय से था परन्तु ढाई वर्ष पूर्व तीन दिन तक इच्छा व्यक्त की तथा उसको पूरा कराने के लिए प्रावश्यलगातार उनके साथ रहकर कई तीर्थक्षेत्रों की यात्रा करने कतानुसार धनराशि की अपनी ओर से स्वीकृति भी का जो सौभाग्य मझे प्राप्त हया उनमे मैंने उनको नज- तुरन्त दे दी। उनकी योजनानुसार कमेटी द्वारा वह कार्य दीक से देखा तथा उनके अभूतपूर्व पक्तित्व से बहुत ही कुछ ही दिनों बाद प्रारम्भ कर दिया गया। हमें बड़ा दू.ख प्रभावित हपा । दिनांक ७.१०.१९७६ को प्रात: 8 बजे है कि उनके जीवनकाल मे वह कार्य पूरा न हो सका। घर पर टेलीफोन की घण्टी बनी और मेरे अपना नाम उनके निधन के बाद पूरे साह परिवार ने उस योजना में बताने पर तुरन्त साहजी से सम्पर्क स्थापित हो गया । साहू पूरी रुचि ली तथा शेप कार्य को पूरा करापा । क्षेत्र पर जी ने इच्छा व्यक्त की कि वह अगले दिन ही सुबह दिनांक १३-४-७८ से १६.४.७८ तक होने वाली पंचकार द्वारा श्री अहिच्छत्र पाश्वनाथ दिगम्बर जैन तीर्थ कल्याणक प्रतिष्ठा पर भी प्रादरणीय माहू श्रेयांसप्रसाद, क्षेत्र जाना चाहते है और वहां से श्री कम्मिला जी, साहू अशोककुमार, साहू पालोकप्रकाश, साहू मनोजकुमार शोरीपुर, बटेश्वर ग्रादि अन्य तार्थों पर भी जाने का समेत समस्त साहू-परिवार ने बड़े उत्साह एवं श्रद्धापूर्वक विचार है। वे चाहत ये कि इस यात्रा में उनके साथ मैं भाग लिया, जिसके लिए हम समस्त साहू-परिवार के भी चलू । मैंन उनको अपनी स्वीकृति दे दी। अगले दिन बहुत ही प्राभारी है । अगले दिन मैं पुनः माहूजी के साथ ८-१०.१६७६ को प्रात. १० बजे उन्होने शाहदरे से ही श्री कम्पिलाजी गया। रात को हम कम्पिलाजी मे ही मुझं साथ ले कर अपनी कार में बैठा लिया । वैसे तो उनके ठहरे तथा रात को वहाँ की कमेटी के सदस्यो से साहजी साथ एक कार पोर भी थी जिसमें उनका सचिव, रसो. नक्षत्र का प्रगति के बारे में बातचीत की तथा उसके इया, चपरासी, नौकर ग्रादि बैठे थे, परन्तु उन्होने मझे जीर्णोद्धार के लिए भी एक बड़ी राशि के लिए घोषणा अपनी कार में अपने पास ही बैठाया। रास्ते मे श्री अहि- की। अगले दिन १०-१०-१९७८ को प्रातः दर्शन-पूजन च्छत्र तीर्थक्षेत्र तथा अन्य तीर्थों एवं अन्य सामाजिक, करने के बाद हम श्री कम्पिला जी से चलकर फीरोजाराष्ट्रीय प्रादि विषयों पर बातचीत होती रही। बाद, शौरीपुर, बटेश्वर (वहा पर दर्शन नही हो सके हम रामपुर, बरेली होते हुए चार बजे श्री अहिच्छत्र पाव. क्योंकि यमुना का पुल टूटा हुमा था, अत: कार मन्दिर तक नाथ पहुंच गए । मेरे द्वारा रात को ही फोन द्वारा सूचना नहीं जा सकी) प्रागरा, चौरासी, मथुरा होते हुए शाम दे देने पर क्षेत्र कमेटी के बहुत से सदस्य रामपुर, मुरादा- को दिल्ली पहुंच गये। इन तीन दिनों में लगातार साहू बादन और रेली से क्षेत्र पर पहले से ही पहुंच गये थे । साहू जी के साथ रहते हुए मैंने उन में एक अभूतपूर्व प्रतिभा जी ने पहुंचते ही बड़ी विनय, श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक को देखा । अभिमान एवं प्रहकार नाम की कोई वस्तु मन्दिरजी मे दर्शन किये और रात को ही साहूजी क्षेत्र पर उनके पास थी ही नही। उन्होंने मुझे जो प्यार-स्नेहही धर्मशाला की कोठरी में ठहरे । उन्होंने वहा ठहरने मे ममता दी वह आज के युग मे विरले ही दे होने वाली तकलीफ की तनिक भी परवाह नहीं की। पाते है। वे ख्यातिप्राप्त अन्तर्गष्ट्रीय उद्योगपति तो थे शाम की प्रारती के बाद साहजी ने वहाँ के मन्दिर जी को ही, साथ में मैंने पाया कि वह बड़े सरल स्वभाव, निरबड़े गौर से निरीक्षण किया तथा वहां सब बेदियो एवं भिमानी, समाजसेवी, धर्मनिष्ठ एव तुरन्त निर्णय लेने उनमें विराजमान प्रतिमानों को बड़े ध्यान से देखा। रात्रि वाले व्यक्ति थे। इन सबके पीछे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती को क्षेत्र के विषय में कमेटी के उपस्थित सदस्यों में विचार. रमा जैन उनकी प्रेरणा स्रोत रही हैं, क्योकि रमाजी के