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३४, वर्ष ३१, कि० ३-४
अनेकान्त
नाम का उल्लेख पाते ही उनकी मांखें नम हो जाती थीं। दूसरी प्रकार भारत का कोई भी ऐसा जैन तीर्थ इसी क्षेत्र समाज, वे जैन समाज एवं राष्ट्र का बहकल्याण चाहते थे। नहीं है जिसकी पोर साहजी का ध्यान न गया हो तथा इसके लिए उनके दिल मे बडी वेदना थी। वह चाहते थे जिसके जीर्णोद्धार में साहजी ने सक्रिय योगदान न दिया हो। किन समाज के समम्त लोग एकजुट होकर समाज के उनकी तीर्थों के प्रति श्रद्धा, भक्ति, धार्मिक भावना तथा जस्थान के लिए कार्य करें। इके लिए वह जैन समाज के उनकी सरलता, सहृदयता, विवेक, बन्धुत्व की भावना, प्रत्येक सम्प्रदाय के साधुनों एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों से उच्च विचार, भ्रातृ-स्नेह एवं ममत्व की भावना, उनकी मिलते रहते थे तथा इसके लिए उन्होंने कई योजनाये भी समाज एव राष्ट्र की सेवा, मिलन-सारिता, मातिथ्यबनाई थी। जैन तीर्थक्षत्रो के जीर्णोद्धार कराने मे उन्होने सत्कारिता, गुरुभक्ति, शैक्षणिक एवं साहित्यिक रुचि भादि विशेष रुचि ली। वह इनको राष्ट्र की धरोहर मानते ये अनेकों ऐसे गुण थे जो किसी बिरले व्यक्ति मे ही पाए जाते और इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी ओर से विपुल धन- है । यात्रा से पाने के बाद भी समय-समय पर मैं उनसे मिला राशि खर्च को । यह साहू शान्तिप्रसादजी की प्रेरणा एवं और जब भी मिला उनके गुणों में कुछ-न-कुछ वशि ही मार्ग दर्शन ही था कि भगवान महावीर का २५.०वां पाई । दिनांक २७.१०.१६७६ को प्रकृति की क्रूर नियति निर्वाण महोत्सव राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े ने उनको सदा-सदा के लिए हमसे छीन लिया। परन्तु वह उत्साह से व्यापक रूप में मनाया गया, जिससे देश के सदेव हमारे मन मे रहेगे तथा उनका उच्च जीवन चरित्र कोने कोने मे शगवान महावीर की वाणी फिर एक दफा सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा और समाज में ही नही गज उठी। भारतीय स्तर पर कोई भी ऐसी जैन संस्था अपितु समस्त राष्ट्र उनको सदेव याद करता रहेगा। नही थी जिसको साहजी का सक्रिय योगदान न मिला हो और
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(पृष्ठ ३१ का शेषाश) सस्थानों को भारी द न देकर संचालित कराई। मूर्तिदेवी धार्मिक कार्यों पर संकट पाने पर साहजी के द्वारा वर्त. कन्या विद्यालय, मूर्तिदेवी सरस्वती इण्टर कालेज, साहू मान काल मे दूर होते रहे हैं। हमें प्राशा कि अब जैन कालेज नजीबाबाद नगर में संचालित कराए। एस. उपरोक्त कार्यों में उनके भ्राता साहू श्रेयांसप्रसादजी तथा पी. जैन काज, सासाराम (बिहार) मे स्थापित कर उनके सुपुत्रगण श्री अशोककुमारजी, श्रीमालोकप्रसादजी भी संचालित कराया। तीन ट्रस्ट सस्याएं, अपने-अपने क्षेत्र में अपने स्व० पिताजी के पदचिन्हों पर चलकर जैन समाज विशिष्ट संम्थाए, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, साहू जैन तथा जैन धर्म की रक्षा करते रहेंगे और अनेक धार्मिक चेगेटेबल सोमायटी व साहू जैन ट्रम्ट (जो अखिल भारतीय एवं सामाजिक कार्यों में उपस्थित होकर यथायोग्य तनमहत्व को सस्थाये है) भारी दान देकर संचालित की है मन धन से सहयोग प्रदाम करते रहेंगे। देश के इतिहास जो प्रचलित है, कार्य परिणित है। तीर्थ क्षेत्र, पुरातत्व में सदा ही साहू जी का कृतित्व वरिष्ठ तथा विशिष्ट केन्द्र तत्वज्ञान की प्रतिष्ठापना, मुनि भक्ति, मुनि रक्षा,
माना जायेगा इसमें कोई संदेह नही।
पाल इडिया दिगम्बर भगवान महावीर २५००वा मिक कार्यों पर सकटो के प्राने पर उनको दूर करने में
निर्वाण महोत्सव सोसायटी के अध्यक्ष तथा भगवान तन-मन-धन हर प्रकार से परिश्रम करके वरिष्ठ शासन
महावीर २५००वा निर्वाण महोत्सव राष्ट्रीय समिति के अधिकारियो से मिलकर पैदा हुई विपदामो को दूर करने
कार्याध्यक्ष रहकर सम्पूर्ण देश में भगवान महावीर परिको सदैव हर समय तत्पर रहकर पाए हुए सकटो को दूर
निर्वाण का जो व्यापक कार्यक्रम हुमा है और जो उस करते थे। इसी प्रकार, पहले सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दोर कार्य मे चेतना जाग्रत हुई है, वह श्री साहूजी की ही की स्वाभाविक दृष्टि थी। उनके स्वर्गवास के पश्चात् प्रेरणा, परिश्रम और लगन से संगठन होकर हुई है। यह यह स्थान थी साहूजी के ग्रहण करने से जैन समाज के श्री साहजी के ही नेतृत्व एवं परिश्रम का श्रेय है।
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