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ग्रंथमाला से भी कई ग्रन्थ प्रकाशित किए गए हैं। चाहते थे, यद्यपि वे उसे पूरा नही कर पाए । तदपि पर्व २५००वा निर्वाण महोत्सव
समाज का कर्तव्य है कि वह अपने दायित्व को समझकर भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव महासमिति के कार्य को प्राग बढ़ाने का प्रयत्न करे। मे साह शान्ति प्रसाद जी ने कार्याध्यक्ष होकर जो ऊपर दिखलाए गए धामिक और सांस्कृतिक ठोस महत्वपूर्ण कार्य किया वह मद्वितीय है। प्रापने उसे गति कार्यों मे स ह जी का जो सह्योग मिला, वह अनुकरणीय प्रदान करते हुए भगवान महावीर और उनके सिद्धान्तो है। इन ठोस कार्यो मे द्रव्य विनिमय कर वे सच्चे अर्थों को घर-घर में पहुंचाने का प्रयत्न किया है पोर धर्मचक्र मे दानवीर है। विभिन्न कार्यक्रमो, योजनामो मे उनका द्वारा सारे भारतवर्ष में उनकी वाणी और चरित को चिन्तन एवं नेतृत्व द्वारा जो विशिष्ट दिशादार साह पहंचाने का अनुक्रम अनूठा था । दिनो मे जो उसका साहब ने दिया है वह चिरस्मरणीय रहेगा। विगट जलूम निकना बह प्रदर्शनोग्य को आकर्षण को अन्तिम क्षणों में साहू जी के परिणाम इतने निर्मल बस्त था । इसका प्रमुख श्रेय साहूशालि प्रसाद जी को है हो गए थे कि उन्होन प्रपन पुत्र प्रशोक कुमार जैन से दिल्ली जैन समाज और अखिन भारतीय जैन समाज इच्छा व्यक्त की थी कि वह स्वस्थ होने के उपनि को है। भूतपूर्व प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा गानी के हस्तिनापुर में मुनि श्री शान्तिमागर जी के निर्देश में सौजन्य से सरकार से भी पूर्ण सहयोग मिना, इसके लिए शेष जीवन व्यतीन करेंगे तथा महाराज श्री जब जमी सभी धन्यवाद के पात्र है।
उचित समझेगे, दे देगे। दिगम्बर जैन समाज में संगठन और एकता बनी इममे स्पष्ट है कि साहू जी की धार्मिक भावना रहे तथा समन्वय की भावना को बल मिले, इसके लिए अन्तिम समय तक सजीव रही है। यद्यपि यहा उनका साहू जी ने महाममिति का निर्माण किगा। सौतिक शरीर अब नही है। किन्तु महत्वपूर्ण कार्यों में वे महासमिति की स्थापना द्वारा जो कार्य व निष्पन्न करना अमर है।
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(पृष्ठ २० का शेषांश) नियम जब साहू जी को भेजे पोर उनसे तरथा का संर- देश का एकबार ही नहीं, कितनी ही बार दौरा किया क्षक बनने के लिए निवेदन किया तो उन्होने साहित्य तथा गरीब स लेकर प्रगीर तक मे जन सेवा के भाव-भरे प्रकाशन की योजना की प्रशा करते हुए तत्काल उमका वह सब उनके महान् व्यक्तित्व का परिचायक है । जयपुर संरक्षक बनना स्वीकार कर लिया। इमलिए पता नही मे प्रायोजित एक सभा में वे इसने द्रवीभूत हो गये कि उन्होंने कितनी प्रकाशन संस्थानों को जैन साहित्य के सारी सभा के ही प्रासू बह निकले थे। प्रचार प्रसार में योग दिया था।
साह जी पुरातत्व के प्रेमी थे प्राचीन मंदिरों के जैन साहित्य एवं जैन समाज की सेवा के लिए जीर्णोद्धार मे उन्होंने विशेष रुचि ली। दक्षिण भारत उनके हृदय में गहरे भाव थे। भगवान महावीर की एव बुन्देलखण्ड के कितने ही मन्दिरों का उन्होने जीणों२५..वीं निर्वाण शताब्दी महोत्सव का जिस कुशलता द्वार करवा कर मन्दिरों की कला एव सम्पत्ति को नष्ट एवं सजगता से सचालन किया तथा समस्त जैन समाज को होने से बचा लिया। एकसूत्र में बांधने का जो प्रशसनीय कार्य किया वह साहू जी साहू जी के कार्यों का वर्णन करने के लिए किसी जैसे व्यक्ति के लिए ही सम्भव या पौर वह सब उनकी एक बड़े ग्रन्थ की पावश्यकता है, जिसमें उनके जन्म से वर्षों की साधना का फल था। स्वास्थ्य खराब होने एवं लेकर मृत्यु पर्यन्त उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सांगोधर्मपत्नी श्रीमती रमा जी का वियोग होने पर भी उन्होंने पांग वर्णन रहे । तभी जाकर हम उनके पूरे कार्यो सेसमाज जिस प्रसाधारण साहस एवं सूझबूझ से काम लिया, सारे को एवं मागे माने वाली पीढ़ी को परिचित करा सकेंगे।
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