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यशस्वी सरस्वती पुत्र
श्रीमती जयवन्ती देवी जैन, नई दिल्ली स जातो येन जातेन, याति वंशः समुन्नतिम् ।
घन्य है उस मां को, जिसने ऐसे यशस्वी सरस्वती परिवर्तिनि संसारे, मृतः कोऽवा न जायते ॥
यों तो ससार में हजारों जीव जन्म लेते हैं तथा मरण ज्ञान को भागीरथी को बहाने, पौर प्रज्ञान के अन्धकार करते हैं लेकिन जीना उन्हीं का सफल है जो अपना जीवन को नष्ट करने के लिए साह जी ने 'भारतीय ज्ञानपीठ' की समाज सेवा में लगा देते हैं तथा अपने कार्यों द्वारा मर- स्थापना की। उनकी स्वनामधन्य पत्नी स्व. श्रीमती कर भी जीवित रहते है।
रमा जैन ने इस भारतीय ज्ञानपीठ की अध्यक्षा के रूप में साह जी की जीवनी त्याग और परोपकार की जोती. साहजी के यश को पमर किया। देश-विदेश का सम्पूर्ण जागती मिसाल है। साहू जी कहा करते थे कि देश के वाङ्मय ज्ञानपीठ के द्वारा मादर एवं प्रतिष्ठा का पात्र इन छोटे-छोटे बच्चों में महावीर, बुद्ध, गांधी और जवाहर बनाया। विद्यमान है। इसलिए साह जी ने देश के साधनहीन छात्रों
श्रेष्ठ बावक :प्रायः देखा जाता है कि विपुल धनराशि की सहायता हेतु "साहू जैन ट्रस्ट" स्थापित किया।
कया। मनुष्य को मदांध बना देती है किन्तु साहू जी इसके अपप्रब तक हमारो छात्र इस ट्रस्ट से लाभान्वित होकर तथा वाद थे। श्रावक के षट कर्तव्यों के पालन में उनकी रुचि अपनी शिक्षा पूरी कर प्रतिष्ठित पदो पर प्रासीन है। थी। उनका विनम्र स्वभाव, निश्छल व्यवहार, गुरुभक्ति, मेधावी छात्रो को विदेशों में विद्याध्ययन हेतु प्राथिक स्वदार संतोष व्रत, ममाज प्रेम एवं प्रभीषण ज्ञानानुराग सहायता देकर सैकड़ो छात्र इंजीनियर, डाक्टर बनकर मां उनके यश:काय को अमरत्व प्रदान करता है। भारती की सेवा कर रहे हैं।
अपनी प्रशंसा सुनकर साह जी नतमस्तक हो जाते एक बार डा. ए. एन. उपाध्ये ने श्री दि० जैन थे। महाराज विद्यानन्द जी की उपस्थिति में अपने ६०वें लाल मदिर मे प्रायोजित एक सभा मे ठीक ही कहा था कि जन्म दिवस समारोह के अवसर पर अपनी प्रशंसा सुनकर "साहजी ने विपुल धनराशि अजित करने में जितनी साव. साहजी रोने लगे। उपस्थित समाज को सम्बोधित करते धानी बरती है, उतनी ही सावधानी उसके सदुपयोग में हए वे बोले कि "जयन्ती तो उन महापुरुषों की मनाते है की है।" साहजी धन के सदुपयोग मे ज्ञान प्रचार को जिनका पूनः जन्म नहीं होगा। मुझे तोससारचक्र में भ्रमण प्राथमिकता देते थे। इसीलिए उन्होंने देश की सैकड़ों करना है। विद्यानन्द महाराज ने जो कुछ मेरे विषय मे शिक्षा संस्थानों को विपुल धनराशि प्रदान की। कहा है, मैं उसके योग्य नही हूं।" और गद्गद् कण्ठ होकर
श्री दि. जैन महिलाश्रम, दरियागज, दिल्ली भी उन्ही मंच पर बैठकर रोने लगे। संस्थानों में से एक है जो उनकी उदारता के लिए चिर उक्त घटना साहजी की प्रान्तरिक महानता एवं नर. ऋणी है।
जन्म को सार्थक बनाने की तड़फन को व्यक्त करती मातृ भक्त : अपनी माता स्व० मूर्ति देवी को स्मृति है। जीवित रखने के लिए मापने 'मूर्ति देवी ग्रंथमाला' का शुभा- तीर्थ भक्त : जिस प्रकार साहू जी मुनिभक्त थे उसी रम्भ किया। इस ग्रंथमाला के अन्तर्गत प्रकाशित ग्रंथों से प्रकार तीर्थ भक्त भी थे। तीर्थों की रक्षा करने, मन्दिरों का भगवान महावीर की देशना का घर-घर मे प्रचार हुमा है।
(शेष पृष्ठ २८ पर)