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६४, वर्ष ३१, कि०२
अनेकान्त
कन्या को लेकर भी झगड़े खड़े हो जाते थे।
वैश्य और शूद्र) की स्थिति ज्ञात होती है, पर उनके घेरे राजा का पद परम्परागत होता था। राजा के अप- कठिन नही थे। चारों वर्गों के अतिरिक्त भी समाज में दस्थ होने पर उसका ज्येष्ठ पुत्र राज्याधिकारी होता व्यावसायिक और प्रौद्योगिक वर्ग थे, इनमे राजक, था।' पुत्र-विहीन राजा का उत्तराधिकारी उसकी पुत्री चाण्डाल, चर्मकार, स्वर्णकार, दारुशिल्पी प्रादि प्रमुख थे। का पुत्र होता था। राज्यासन पर पदारूढ़ होने से पूर्व प्राचीन काल से ही विवाह जीवन की सर्वोत्कृष्ट अभिषेक होने की परम्परा थी।
घटना मानी जाती है। उसका इस काल में ह्रास देखने इस काल का भारतीय समाज युद्ध-विज्ञान में प्रर्याप्त को मिलता है । विवाह अब दैविक विधान न रह कर, उन्नति कर चुका था। स्वार्थ सिद्धि के लिये देव, असुर, योग्यता, पराक्रम और शक्ति का मापदण्ड रह गया था। मानव और पशु सबका चरम साधन एकमात्र युद्ध ही इस काल में स्मृतियों में प्रतिपादित पाठ प्रकार के विवाहों था। पशुप्रो और मनुष्यों में भी युद्ध होने के उदाहरण मे से ब्राह्म, प्राजापत्य और पार्ष को ही धर्मसम्मत माना दृष्टिगत होते है।
जाता था। अन्य विवाहों के प्रकार (पासु, गान्धर्व, इस काल मे रथयुद्ध, पदातियुद्ध, मल्लयुद्ध, दृष्टियुद्ध राक्षस और पंशाच) को निन्दनीय या परित्याज्य माना जलयुद्ध, प्रभृत्ति विविध प्रकार के युद्धो के उदाहरण
जाता था।" मिलते है। युद्ध में प्रमुखत: हाथी, घोड़, रथ, पैदल इम काल मे उक्त पाठ विवाह विधियों में से कोई भी सैनिक, बैल, गान्धर्व और नर्तकी ये सात अंग होते थे। एक विशुद्ध रूप में प्रचलित नही थी। समाज में ऊंचे व्पूहों मे क्रौच, गरुड़, चक्रादि के उल्लेख प्राप्त होते है। आदर्शों के बीच स्थान न मिलने पर भी गान्धर्व व राक्षस मसि, उलखल, कायत्राण, कार्मूक, कोमुदगदा, खग, खुर, विधि का प्रसार था ।" अन्य विवाहों में वाग्दान से, गदा, गाण्डिव, चक्र जानु, तल, तोमर, त्रिशूल, दण्ड,
भविष्यवाणी से, साटे से विवाह," विधवा विवाह एवं वाणादि अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्र थे । कतिपय शस्त्रास्त्री
विधुर विवाह आदि भी प्रचलित थे। समाज मे बहपत्नी में अद्भुत चमत्कृतिपूर्ण अलौकिक शक्ति भी विद्यमान
प्रथा" प्रचलित थी। मातुल कन्या से विवाह सम्भव थी। गज, घोड़े, रथ, ऊँट, खच्चर प्रादि भी युद्ध की था।" चारुदत्त का विवाह उसके मामा की लडकी से सवारियां थी। राजमहिषियां भी रण-कौशल मे निष्णात किया गया था (२१/३८)। अर्जुन और सुभद्रा का सम्बन्ध होती थी और प्रावश्यकता पड़ने पर युद्ध भी करती थीं। भी ऐसा ही था। विवादो विकसित व्यक्तियों का कभी-कभी अपने पतियो की सहायतार्थ भी युद्ध मे साथ
सम्बन्ध था। कन्याएं पिता के घरमे ही युवा हो जाया करती साथ जाती थीं।"
थीं। प्रथानों में दहेज प्रथा का भी उल्लेख है। यद्यपि सामाजिक जीवन
स्पष्ट रूप से 'दहेज' शब्द का न नाम माता है और न हरिवंशपुराण मे एक सगठित समाज का स्वरूप उसकी मांग की जाती थी। खुशी से लड़की बाला लड़के मिलता है। समाज मे चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, को यथाशक्ति मौर यथेच्छानुसार कुछ दे देता था।
२. हरिवंशपुराण, २७१५४, २११११२ । ३. हरिवंशपुराण, २७१४७-६०। ४. लेखक का शोध प्रबन्ध, पृ०८६ । ५. हरिवशपुराण, ४२१८०, ५०१०३-१०४,४२१८१६ हरिवंशपुराण, ३६।३०-३४, २४१८, ११२९४,३६४१. ४३, ३६।४५। ७. हरिवंशपुराण, १११८०-८२। ८. हरिवंशपुराण, ११३८३ । ६. हरिवंशपुराण, ५०११०२-११०। १०. हरिवंशपुराण ५२१५। ११. हरिवंशपुराण, ६।३६ । १२. पाटील, डा० के०के०, कल्चरल हिस्ट्री फोम वायुपुराण-पूना, १६६४, पृष्ठ १५६ । १३. हरिवंशपुराण, ४४१२१-२५, ४३३१७१-१७६, ४४।२६-३२, ४२१७४-६७, ४४१६-१६ । १४. हरिवशपुराण, ३३।१०.२६ । १५. (1) नारद स्मृति, १२०६७ । (1) बाल्वलकर, हिन्दू सोशल इंस्टिट्यूशन्स,
बम्बई, १९३९ । (m) विवाह सम्बन्धी अध्याय-मल्टेकर : पोजीशन माफ वुमन इन ऐनशियन्ट इण्डिया, पृष्ठ १८१-१८३ । १६. हरिवंशपुराण, १२॥३२, २४१६, ४४॥३-५०, ५६।११६ । १७. हरिवंशपुराण, ३३०११-२४, ३३॥१३६, २११३८ ।