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साहू जी और भावी समाजोत्थान योजना
डा. विद्याधर जोहरापुरकर, जबलपुर
स्वर्गीय साह शान्तिप्रसाद जी से व्यक्तिगत प्रत्यक्ष दिखाई देती है। अब समय प्रा गया है कि हम पन: संपर्क होने का सौभाग्य हमे प्राप्त नही हुमा। फिर समीक्षात्मक अध्ययन पद्धति को अपनायें भोर सत्यान्वेषण भी उनके द्वारा वितित पौर संरक्षित साहित्यिक कार्यों को प्रादरभाव का बाधक न समझे। इस दृष्टि से विचार. में यत्किचित भाग लेन का अवसर अवश्य मिला। अतः णीय कुछ विषयों को सक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत है। उनकी स्मृति मे पादराजलि के रूप में कुछ विचार प्रकट
पुरातत्त्व : करना अपना कर्तव्य समझ कर यह लेख प्रस्तुत किया जा रहा है।
भारतीय पुरातत्त्वज्ञों द्वारा खोजे गये सहस्रों शिलास्वर्गीय साहू जी के बहुविध यशस्वी कार्यों गे अन्तिम, लेखों से जैन समाज के प्रतीत के विषय मे बहुमूल्य जानभगवान महावीर के निर्वाण की पच्चीसवी शताब्दी के कारी मिली है और महावीरोत्तर युग का इतिहास पूर्ण होने पर प्रायोजित विशाल समारोह था। चार-पाच निश्चित करने मे जैन पण्डितो ने भी इस सामग्री से लाभ वर्षों तक चले इन विविध प्रायोजनों मे जैन समाज ने
उठाया है। किन्तु महावीर पूर्व युग के विषय मे पुरातत्त्व अपने अतीत प्रौर वर्तमान के गौरव का विस्तृत अनुभव का उपलब्धिया के प्रान जन पण्डित उदासीन प्रतीत होते किया। दर्शन, साहित्य र कला के क्षेत्रो मे जैनी के है। भारत के शताधिक स्थानीक वैज्ञानिक उत्खनन योगदान पर विश्व के जन-जनेतर मनोपियो ने प्रशसा के परिणामो का सार संक्षेप पालचिन दपति के महत्त्वपूर्ण फल बरसाये। महावीर निर्वाण सबन की छब्धीसवी ग्रन्थ 'दि बर्थ प्राफ सिव्हिलाइझेशन इन इन्डिया' म 31. शताब्दी का प्रारम्भ अत्यन्त उत्माहवर्धक रूप मे हया। लब्ध है । इसम ज्ञात होता है कि ईसवी सन् पूर्व तइसवी इसमे सन्देह नही कि इस छब्बीसवी शताब्दी में भी हमारे
शताब्दी तक भारतीय पाषाणयुग में ही थे। ई० पू० गौरव को अधिकाधिक उजागर करने वाले कार्यक्रम चलत
तेईसवी शताब्दी मे कृषि पर पाधारित सभ्य जीवन के रहेगे । इसके साथ ही यह मावश्यक प्रतीत होता है कि
साथ ताम्रयुग का प्रारम्भ हुमा जो लगभग एक सहनामो जन विचारक मात्मगौरव के कोष में लिपटे न रहें तथा
तक चला मोर फिर ईवी सन् पूर्व दसवी-ग्यारहवी माधुनिक युग में प्राप्त नवीन ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश में
शताब्दी मे लोहयुग का प्रारम्भ हुप्रा। यहा ध्यान रखना प्रतीत की उपलब्धियों का यथार्थपरक मूल्यांकन भी
होगा कि समयनिर्धारण के ये निष्कर्ष रडियाकाबंन विधिकरते चलें। इसी दृष्टि से कुछ विचार यहा प्रस्तत किये पर प्राधारित है --इन्हे भौतिक पदार्थ विज्ञान का ठोस
प्राधार प्राप्त है -प्रतः कवल अनुमानात्मक कह कर विगत डेढ़ शताब्दी मे विकसित समीक्षात्मक अध्ययन इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। इनके प्रकाश में भारत पद्धति का प्रयोग जन विद्या के क्षेत्र में स्व०५० मुख्तार में प्रार्य सम्पता के इतिहास का प्रारम्भ प्रब हम ईसवी जी, प्रेमी जी, जिनविजय जी प्रादि मनीषियों ने किया सन् पूर्व बाईसवी शताब्दी से करना होगा तथा हमारे है। इनके प्रयलों से विक्रम की दूसरी सहस्राब्दी के जैन पुराण पुरुषो की कथानो में वर्णित लाखो-करोड़ो वर्षों को साहित्य मे व्याप्त संकीर्णता और भ्रान्तियो को समझने में कालगणना को छोड़ना होगा। इस दृष्टि से वैदिक काफी सफलता मिली है। किन्तु इस पद्धात का प्रयोग पुराण कथापो के अध्ययन का उत्तम प्रयत्न १० द्वारका विक्रम की प्रथम सहस्राब्दी के साहित्य के विषय म प्रायः प्रसाद मिश्र के ग्रन्थ 'स्ट डीज इन दि प्राटा हिस्टरी ग्राफ नही हुमा है । इसके विपरीत, प्रतिक्रिया के रूप में इस युग इन्डिया' में मिलता है। जैन पुगण व.थायो क विषय म के प्राचार्यों के विषय मे पूजा की भावना अधिक बढ़ती ऐसे प्रयल अपेक्षित है।