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कब ११ कि. ३-४
अनेकान
विधान के बाद भगवान महावीर ९५००वां निर्वाण समा- एक बार प्राप महार जी तथा पपौरा जी गये थे। रोह के विविध प्रायोजनों पर विचार होता रहा। जाते साथ में रमा जी तथा छोटा पुत्र भी था। उस समय में समय स्टेशन पर मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा कि साहूजी भी वहां गया था। शान्तिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार देख कौन है? मैंने कहा कि वे खड़े हैं काला कोट पहने। ये कर उन्होंने बडी प्रसन्नता प्रगट की थी। शन उन्होंने सुन लिये। सुनते ही पत्नी के पास खड़े
___ सागर विद्यालय का स्वर्ण जयन्ती उत्सव सम्मेदशिखर होकर कहने लगे-माता जी जय जिनेन्द्र।
जी मे करने की स्वीकृति लेने के लिए एक बार हम और द्रोणगिरि के गजरथ महोत्सव में पास-पास ठहरने संगोरिया जी कलकत्ता गये थे। तब पापने स्वीकृति देते में अधिक सम्पर्क रहा। मैंने कहा कि प्राप यहां तक पा हए बड़ी प्रसन्नता प्रकट की थी। इसके एक वर्ष पूर्व बनागये हैं, प्रतः सागर चलकर पूज्य वर्णी जी का विद्यालय भी रस के स्याद्वाद विद्यालय का स्वर्णजयन्ती उत्सव सम्मेदपापको देखना है। वे बोले कि मागर चलने की इच्छा तो शिखर जी मे सम्पन्न हुअा था और उसकी अध्यक्षता बहुत समय से है, पर शरीर इतनी लम्बी यात्रा करने मे स्वयं साहजी ने की थी। सागर विद्यालय के उत्सव के समय समर्थ नहीं है। प्रापका प्राग्रह हो तो मागर चलूं या नना- सम्मेदशिखर जी नही पहुंच सके। परन्तु बाद में पूज्य गिरि जी के दर्शन कर पाऊ। दो जगह में से एक ही जगह वर्णी जी के पास गिरीडीह में प्राकर, न पा सकने पर खेद जा सकता है। उनके शरीर की स्थिति को देखते हुए मैं प्रकट किया और मागर विद्यालय को प्रति वर्ष ५०००) चप हो गया। वे नैनागिरि जी के दर्शन कर द्रोणगिरि की सहायता देना स्वीकृत कर गये । वह सहायता बराबर जी वापिस पा गये। वहा उनके हाथ से छात्रावाम का प्राती रही। अब दो वर्ष पूर्व ५०००० के शेयस देकर शिलान्यास कराया गया। रात्रि को विशाल जन समूह मे उस महायता को स्थगित किया है। ईमरी मे पूज्य वर्णी प्रापका सारमित भाषण हुमा । धार्मिक भाषण के बाद जी का स्मारक बनाया गया है । उसके उद्घाटन के समय उन्होंने समाज की प्राथिक स्थिति को सुधारने के सन्दर्भ साहजी स्वयं पधारे थे। मझे भी पहुंचने का अवसर में भी अनेक उपाय बतलाये। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति मिला था। उस समय वे पूज्य वर्णी जी का गुणगान करते बड़े उद्योगों की क्षमता नहीं रखता है, यह ठीक है, परन्तु हए गदगद हो गये; बोले कि मझपर कोई आपत्ति माती अनेक लोग मिलकर परस्पर के सहयोग से बड़े-बड़े कार्य है और सपने में वर्णी जी के दर्शन हो जाते है तो सब कर सकते हैं। प्रौद्योगिक कार्यों में लगन और धर्य को प्रापत्ति टल जाती है। मेरी उनके प्रति बहुत भारी पावश्यकता होती है। अन्त मे कहा कि पूज्य वर्णी जी प्रास्था है। की साधना भूमि बुन्देलखण्ड का प्रतीत गौरवशाली वे एक सौजन्य-मूर्ति थे। उनके प्रति स्मृति अंक का रहा है। तभी तो यहां भनेक जिन मन्दिरों का निर्माण प्रकाशन करना कृतज्ञता प्रकाशन का एक प्रशस्त रूप है। हुमा है।
000 प्राचीन काल में जैन धर्म महा सम्राट बनगुप्त के दरबार में सेल्युकस के राजदूत मेगास्थनीज ने अपने 'भारतवर्षीय वर्णन' में लिखा कि-"भारतीयों के दो सम्प्रदाय है.-एक 'सरमनाई' (Sarmanai) (अर्थात श्रमण) और दूसरा पाचमनाई (Brachmanai) (अर्थात् बाह्मण)। सरमनाई होके अन्तर्गत वे दार्शनिक है जो 'हाइलोण्योह' कहलाते हैं। वे नगरों और घरों में नहीं रहते, वृक्ष की छाल से अपने को ढकते हैं मोर बस अपने हाथों से मुंह तकलेजाकर पीते है। विवाह करते हैं, सन्तानोत्पावन ।"
मौलाना सुलेमान मरवी द्वारा लिखित 'परमौर भारत के सम्बन्ध' नामक ग्रन्थ में लिखा है किसंसार में पहले दो ही धर्म ये-एक सममियन और दूसरा कैरियम । 'समनियन'लोग पूर्व वेशों में रा. सानवाले इनको बावचन में 'शमनान' और एकवचन में 'दमन' कहते हैं। चीनी यात्री सांग ने भी 'भमरस' (Sramaneras) नाम से 'मम' का उल्लेख अपनी यात्रा प्रसंग में किया।