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R. N. 10591/82 वीर-सेवा-मन्दिर के उपयोगी प्रकाशन परातन नवाक्य-सची : प्राकृत के प्राचीन ४६ मूल-ग्रन्थों की पद्यानुक्रमणी, जिसके साथ ४८ टीकादि ग्रन्थों में उदधुत दूसरे पद्यो की भी अनुक्रमणी लगी हुई है । सब मिलाकर २५३५३ पद्य-वाक्यों की सूची । संपादक : मुख्तार श्री जगलकिशोर जी की गवेषणापूर्ण महत्त्व की ७ पृष्ठ की प्रस्तावना से अलंकृत, डा. कालीदास नाग, एम. ए., डी. लिट. के प्राक्कथन (Foreword) और डा० ए. एन. उपाध्ये, एम. ए.,डी. लिट. की भूमिका (Introduction) से भूपित है। शोध-खोज के विद्वानो के लिए प्रतीव उपयोगी, बडा साइज, मजिल्द । १५.०० प्राप्तपरीक्षा : श्री विद्यानन्दाचार्य की स्वोपज्ञ सटीक अपूर्व कृति, प्राप्तों की परीक्षा द्वारा ईश्वर-विषयक
सुन्दर विवेचन को लिए हए, न्यायाचार्य पं दरबारीलालजी के हिन्दी अनुवाद से युक्त, सजिल्द । स्वयम्भू स्तोत्र : समन्तभद्र भारती का अपूर्व ग्रन्थ, मुख्तार श्री जुगलकिशोरजी के हिन्दी अनुवाद तथा महत्त्व
की गवेषणापूर्ण प्रस्तावना से सुशोभित । स्तुतिविद्या : स्वामी समन्तभद्र की अनोखी कृति, पापो के जीतने की कला, सटीक, सानुवाद मोर श्री जुगलकिशोर मुख्तार की महत्त्व की प्रस्तावनादि से. अलकृत, सुन्दर, जिल्द-सहित ।
१.५० मण्यात्मकमलमार्तण्ड : पंचाध्यायीकार कवि गजमल की सुन्दर प्राध्यात्मिक रचना, हिन्दी-अनुवाद-सहित। १.५० पुक्त्यनुशासन : तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण, समन्तभद्र की अमाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नही
हुमा था। मुख्तार श्री के हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादि से अलकृत, सजिल्द । ... १-२५ समीचीन धर्मशास्त्र : स्वामी समन्तभद्र का गृहस्थाचार-विषयक प्रत्युत्तम प्राचीन ग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोर
जी के विवेचनात्मक हिन्दी भाष्य और गवेषणात्मक प्रस्तावना से युक्त, सजिल्द । ... ३.०० अनग्रन्थ-प्रशस्ति संग्रह, भाग १: सस्कृत और प्राकृत के १७१ अप्रकाशित ग्रन्थो की प्रशस्तियो का मगलाचरण
सहित अपूर्व संग्रह, उपयोगी ११ परिशिष्टो और ५०परमानन्द शास्त्रो की इतिहास-विषयक माहित्य
परिचयात्मक प्रस्तावना मे अलकृत, सजिल्द । ... समाधितन्त्र और हष्टोपदेश : अध्यात्मकृति, प० परमानन्द शास्त्री की हिन्दी टीका सहित
४.०० भवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ : श्री राजकृष्ण जैन अध्यात्म रहस्य : पं. प्राशाधर की सुन्दर कृति, मुख्तार श्री के हिन्दी अनुवाद सहित ।
१०० जनप्रन्य-प्रशस्ति संग्रह, भाग २ : अपभ्रश के १२२ अप्रकाशित ग्रन्थो की प्रशस्तियो का महत्त्वपूर्ण सग्रह। पचपन
प्रन्थकारो के ऐतिहासिक प्रथ-परिचय और परिशिष्टों सहित। स. प. परमानन्द शास्त्री । सजिल्द। १२.०० ग्याय-दीपिका : मा अभिनव धर्मभूषण की कृति का प्रो. डा० दरबारीलालजी न्यायाचार्य द्वारा स० अनु०। ७.०० न साहित्य पोर इतिहास पर विशद प्रकाश : पष्ठ संख्या ७४, सजिल्द ।
५-०० कसायपाहडसुत्त : मूल प्रन्थ की रचना प्राज से दो हजार वर्ष पूर्व श्री गुणधराचार्य ने की, जिस पर श्री
पतिवृषभाचार्य ने पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व छह हजार श्लोक प्रमाण चूर्णिसूत्र लिखे । सम्पादक पं हीरालालजी सिद्धान्त-शास्त्री। उपयोगी परिशिष्टो और हिन्दी अनुवाद के साथ बड़े साइज के १००० से भी अधिक पष्ठों मे। पृष्ट कागज और कपडे की पक्की जिल्द ।
२०.०० Reality : प्रा० पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि का अंग्रेजी मे पनुवाद । बडे माकार के ३०० पृ., परको जिल्द भन निबन्ध-रत्नावली : श्री मिलापचन्द्र तथा श्री रतनलाल कटारिया
०-५० ध्यानशतक (ध्यानस्तव सहित) : सपादक पं० बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री
१२.०० भाषक धर्म संहिता : श्री दरयावसिंह सोषिया जैन लागावली (तीन भागों में): (तृतीय भाग मुद्रणाधीन.) प्रथम भाग २५.००%, द्वितीय भाग २५.०० Jain Bibliography (Universal Encyclopaedya of Jain References) (Pagcs 2506) (Under print)
प्रकाशक-वीर सेवा मन्दिर के लिए रूपवाणी प्रिटिंग हाउस, दरियागज, नई दिल्ली-२ से मुद्रित ।
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