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प्रब विकल्प हप मे उन्होने निश्चय किया कि वीर-सेवा-मन्दिर को सरसावा जैसे छोटे-से कस्बे से हटाकर राजधानी दिल्ली में लाया जाय और अधिक व्यवस्थित रूप से चलाया जाय । अतएव दिल्ली के दरियागंज मे भूमि लेकर एक चौम जिला विशाल भवन 'धोर-सेवा-मन्दिर' के नाम से निर्माणित हुमा, और संस्था एव उसके मधिष्ठाता महतार साहब भी वहा स्थानान्तरित हो गये। संस्था की नई सोसाइटी, ट्रस्ट, विधान प्रादि भी बन गये और कार्य होने लगा। यह बात दूसरी है कि कतिपय मतभेदों के कारण कुछ समय बाद मुख्तार साहब ने स्वयं को सस्था से प्रत्यक्ष रूप मे पृथक् कर लिया, किन्तु सस्था चलती रही मोर साहूजी उसका संरक्षण बराबर करते रहे। 'अनेकान्त' जब सरसावा से प्रकाशित होता था तब भी साहूजी ने उसके मुद्रण-प्रकाशन की बेहतरी एवं सुविधा के लिए उसे अपने भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कराना प्रारम्भ कर दिवा था। यह व्यवस्था भी कुछ ही वर्ष चल पायी। तथापि वीर-सेवामन्दिर मोर 'मनेकान्त' पर उनका प्रेम बराबर बना रहा, और ये दोनो माज भी जो जीवित एव सक्रिय है, उसका बहुत-कुछ श्रेय साहूजी को है।
प्रस्तु, वीर-सेवा-मन्दिर एवं 'भनेकान्त' के लिए यह उचित ही था कि वे अपने उस परमोपकारी महानुभाव के स्वर्गस्थ हो जाने पर उनकी स्मृति में कम से कम एक उपयुक्त विशेषांक तो निकाल ही दें। इसी प्राशय से इस विशेषांक की योजना बनी, और भले ही कुछ विलम्ब से, यह अपने पाठको के हाथ में है । विशेषांक की तैयारी में उसके सम्पादक श्री गोकुलप्रसाद जैन ने जो मोत्साह श्रम किया वह सराहनीय है। वीर-सेवा-मन्दिर के महासचिव श्री महेन्द्रसेन जनो का भी पूरा सहयोग प्राप्त हुना। संस्था एवं पत्र के अन्य प्रेमियों, विद्वान लेखको प्रोर स्व० साहजी के प्रशसको के अमूल्य सहयोग के लिए भी सम्पादक-मण्डल माभारी है।
अन्त मे, हम प्रबुद्ध समाजचेतना एव सस्कृति-सेवी तथा अपने चिरस्मरणीय महामना स्व० साहू शान्तिप्रसाद जैन की स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
ज्योतिप्रसाद जैन
ज्योति निकुञ्ज, चारबाग, लखनऊ-१