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झारड़ा की अप्रकाशित जैन देवी प्रतिमाएं
D डा० मायारानी प्रार्य, उज्जैन
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले की महीदपुर तहसील से पूर्व नीचे के प्रभिलेख मे 'संवत १२२६ वैशाख वदी। शुक्र दिशा में १५ कि. मी. दूर झारडा ग्राम अपने जैनावशेषो ... शांतिनाथ चंत्ये सा श्री गोशल भाय के कारण कला जगत मे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। कूटम्बेन सहितेन निज गोत्र देव्याः श्री अच्छम्नाथ प्रतियहाँ कई स्थलो पर जन अभिनय तथा तीर्थ व.र प्रतिमायें कृति कारिता" अकित है। हैं जिनमें से कुछ को तो डाकर वाणकर ने प्रकाशित
तीसरी प्रतिमा चक्रेश्वरी की है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभ किया है। पूर्व जन जिला जैन र.वशेष सग्रह
नाथ की शासनदेवी चश्वरी परमार मूर्तिकला मे विशेष समिति के तत्वावधान मे झारडा ग्राम के जैन अवशेषो का
रूप से अकित मिलती है। मालवा की ऐसी चक्रेश्वरी सर्वेक्षण पं० सत्यधर कुमार जी सेठी तथा डा सुरेन्द्र
प्रतिमाये उज्जैन की जैसिंहपुग जैन संग्राहलय कुमार मार्य ने किया। यहाँ ५.६ प्रतिमायें प्राप्त हुई है
मे सकलित है। झारडा की इस प्रतिमा मे देवी गरुड़जिनकी चर्चा प्रथम बार यहां की जा रही है।
वाहना है और प्रष्टम् नी है। रूपमंडनकार ने जो प्रायुध वि० सं० १२०८ के अभिलेख वाली रोहिणी की एक
दिये है वही इस प्रतिमा में है। चक्र, पाश, वाण, वरद, कलात्मक प्रतिमा २' ५" ऊची और १.७" चौड़ी है।
अकुश, वज प्रायुध स्पष्ट है व दो हाथो के मायुध मग्न १६ विद्यादेवया म राहिणा प्रसिद्ध है । प्रतिमा का वाहन अस्पष्ट शिलानेम्व से प्रतिमा का निर्माण काल १३वी गाय है। प्रतः यह श्वेताम्बर परम्परा मे निमित है।
अतः यह पताम्बर पपसम नामा हाताब्दी ज्ञात होता है। प्रतिमा के चार हाथ है। ऊपर के प्रथम बाये हाथ मे
झारड़ा की चतुर्थ व पंचम जैन प्रतिमायें क्रमश: कलश, दायें हाथ मे शख, नीचे के बॉये हाथ मे कमल व
पदमावती व अम्बिका की है। ये क्रमशः पाद्यनाथ चौथा भग्न है । प्रतिमा एक विशिष्ट मूर्तिकला का उदा.
और नेमिनाथ की यक्षिणी देवियाँ है । पद्मावती ललिताहरण यह प्रस्तुत करती है कि इसमें वाहन के माधार पर
सना है और अम्बिका की गोद मे बालक है। जैन देवी श्वेताम्बरी है, पर मायुध के प्राचार पर दिगबर है (जंन लक्षण ग्रंथों के प्राधार पर)। संभवतः यह परमार इस प्रकार की अन्य खडित देवी अबिका की प्रतिमायें नरेश भोज के समय संस्थापित धार्मिक समन्यव के कर्तृत्व घरों की सीढियों व दीवारों में चनी हुई पायी गई है जो द्वारा प्रभावित थी। देवी को शरीर यष्टि विशुद्ध रूप से अभी तक पूर्णतः अप्रकाशित है। झारड़ा में तीर्थंकरपरमार शिल्प से अनुप्राणित है।
प्रतिमाये प्रचुर मात्रा में है (डा. वाकणकर ने प्रादिनाथ, द्वितीय प्रतिमा काले स्लेटी पत्थर पर बच्युता सुपार्श्वनाथ, सुमतिनाथ की ही लगभग ३० प्रतिमायें अथवा पच्छुप्ता देवी की है। जैन प्रतिमा शास्त्र के खोजी है)। सभी प्राय: १० से १३वी शताब्दी में निमित है अनुसार यह भी १६ विद्या देवियों में प्रसिद्ध है। देवी व उन पर मालवा के परमार मूर्ति-शिल्प की स्पष्ट छाप है। अश्व पर मारूद हैं और ५.४" लम्बे व ३.७" चौडे
000 प्रस्तर फलक पर उभारी गई है। दो हाथों से नमस्कार
२२, टी. माई०टी० कालोनी, मुद्रा की प्राप्ति व दायें में खड्ग तथा बायें में बज है।
दशहरा मैदान, उज्जैन (म. प्र.)