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भोम् महम्
নিকাণন
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा-मन्दिर, २१दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण सवन् २५०४ वि०म० २०३४
वर्ष ३१
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किरण २
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प्रेल-जन १९७८
श्री महावीर-स्तवन सम्मति जिनपं सरसिजवदनं, संजनिताखिल-कर्मकमथनं । पद्मसरोवरमध्यगलेन्द्र, पावापुरि-महावीर-जिनेन्द्रं । वीर-भवोद धिपारोत्तारं, मुक्ति-स्त्री-वधु-नगर-बिहार। द्विादशकं तीर्थ-पवित्रं, जम्माभिपक्रत-निर्मलगा। वर्धमान-नामाख्य-विशालं, मानप्रमाण-लक्षण-दशतालं । शत्रुविमन्थन-विकट भटविर, इष्टश्वर्यधुरीकृतदूर । कंडलपुरि-सिद्धार्थ-भूपालं, तत्पत्नी-प्रियकारिणी-बालं । तत्कुलनलिन-विकासितहंस, चातपुरोघातिक-विध्वंसं । ज्ञानदिवाकर-लोकालोकं, निजित-कर्माराति-विशोकं । बालवयस्संयम-सुचालितं, मोहनहानम-मधन-विनीतं ।।
.-माशाधरः
अर्थ -- कमल जैसी मुख श्री वाले जिननाथ सन्मति ने समस्त कर्मों को पूर्णतया मथ डाला। पावापुरी में पद्म सरोवर के मध्य उन महावीर जिनेन्द्र ने निर्वाण लाभ किया । वह वीर प्रभु संमाररूपी सागर से पार उतारने वाले और मूक्ति रूपी लक्ष्मीवधु में सदा विलास करने वाले है। जन्माभिषक से हए निर्मल देह वाले वह भगवान चौबीसवे पवित्र तीर्थ के कर्ता हैं। उनका विशाल प्राशय वाला वर्षमान नाम है और उनके शरीर का मान दश ताल है । कमं शत्रुनो के उन्मूलन में वह अद्भुन सुभट वीर है. अोर सांसारिक वैभव की धरी को ही उन्होंने अपने से दूर कर दिया है। कुण्डलपुर के महाराज सिद्धार्थ की धर्मपत्नो प्रियकारिणी के वह लाडले पुत्र हैं। उनके कुलरूपी कमल का विकसित करने के लिए सूर्य के समान है तथा समस्त घात प्रतिघात के विश्वसक हैं। अपने ज्ञान सूर्य से लोकालोक को प्रकाशित करके तथा कर्म शत्रुनो को पराजित करके वह विशोक हुए हैं। बालवय से हो सयम का सम्यक् पालन करके तथा मोहरूपी महाअग्नि का शमन करके उक्न माह को उन्होंने विनोत बना दिया है।
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