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सन्तकवि समोर उनका साहित्य महाकवि र इधु ने अपने प्राश्रयदातामों की ११-११ निक, सैद्धान्तिक एव प्राध्यात्मिक ग्रन्थों का भी प्रणयन पीढ़ियों तक की कुल परम्पराएं एवं उनके द्वारा किए गये किया है। यद्यपि उक्त ग्रन्थों में निरूपित बिषय कुन्दकुन्द साहित्य, धर्म, तीर्थ, मूत्ति-निर्माण, मन्दिर निर्माण, दान प्राभत पूर्वाचार्यों से ही परम्परा-प्राप्त है, इस कारण एवं राज्य सेवा सम्बन्धी कार्यों पर अच्छा प्रकाश डाला उनमें मौलिकता भले ही न हो, तो भी 'नद्या नवघटे है। इन सन्दर्भो के आधार पर मालवा के मध्यकालीन
जलम्' वाली उक्ति के अनुसार विषप के प्रस्तुतीकरण में समाज के सांस्कृतिक इतिहास का प्रामाणिक लेखा- अवश्य ही निम्न प्रकार के वैशिष्ट्य दृष्टिगोचर होते हैजोखा तैयार हो सकता है। इस विषय में सक्षेप म यह
१. सिद्धान्त प्रस्फोटन के लिए प्राख्यान का प्रस्तुतीकहा जा सकता है कि रइधु-साहित्य मध्यकालीन परि- करण । स्थितियों का एक प्रतिनिधि साहित्य है। उसमे राजतन्त्र
२. बहुमखी प्रतिभा द्वारा सिद्धान्तों का सरल रूप
में प्रस्तुतीकरण । एवं शासन व्यवस्था, मामाजिक-जीवन, परिवार-गठन एव
३. विषयो का क्रम-नियोजन । परिवार के घटक, वाणिज्य-प्रकार, आयात-निर्यात की
४. दार्शनिक विषयो का काव्य के परिवेश में प्रस्तुतीसामग्रियो की सूची, समुद्र-यात्रायें, प्राचार-व्यवहार, मनो.
करण । रजन, शिक्षा-पद्धति सम्बन्धी बहुमूल्य सामग्री प्राप्त ५ प्राचार के क्षेत्र मे मौलिकता का प्रवेश। होती है।
महाकवि रइघ ने अपने समस्त वाङ्मय मे चार प्राचीन एव मध्यकालीन भारतीय भूगोल की दष्टि भाषामो का प्रयोग किया है--मस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश से भी रइधू साहित्य कम महत्त्वपूर्ण नही। भारतवर्ष की एव हिन्दी। मस्कृत में कवि ने कोई स्वतन्त्र रचना नही मध्यकालीन राजनैतिक सीमाएँ; विविध नगर, देश, ग्राम, की, किन्तु ग्रन्थों की सन्धियो के ग्रादि एव अन्त में आदि पत्तन, पर्वत, नदियां, वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, आदिम मंगल या आशीर्वादात्मक विचार संस्कृत के प्रार्या, वसन्त. जातिया, खनिज पदार्थ, यातायात के साधन प्रादि सम्बन्धी तिलका, मालिनी, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवना, मन्दाक्रान्ता, सामग्री इसमे प्रस्तुत है।
शिखरिणी, स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित जैसे विविध श्लोकों साहित्यिक दृष्टि से रइघु के प्रबन्धात्मक प्राख्यानों के माध्यम से व्यक्त किये है। उपलब्ध ग्रन्थो मे ऐसे का गम्भीर अध्ययन करने से उनकी निम्नलिखित विशेष- श्लोको की संख्या १२० के लगभग है। इलोको की ताएँ परिलक्षित होती है
सम्कृत भाषा पाणिनी-सम्मत ही है, किन्तु कही-कही उस १. पौराणिक पात्रों पर युग-प्रभाव ।
पर प्राकृत, अपभ्रंश का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। २. प्रबन्धो की अन्तरात्मा मे पौराणिकता का पूर्ण रइधू की प्राकृत रचनाओं में शौरसेनी प्राकृत का समावेश रहने पर भी कवि द्वारा प्रबन्धों का स्वेच्छया प्रयोग मिलता है। उसमें क्वचित् प्रर्धमागधी एव महा
गष्ट्री के शब्द प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। ३. चरित-वैविध्य ।
___ कवि की एक रचना हिन्दी में भी उपलब्ध है। ४. पौराणिक प्रबन्धो में काव्यत्व का मयोजन । यद्यपि वह अत्यन्त लघकृति है, जिसमे मात्र ३६ पद्य है, ५. प्रबन्धावयवों का सन्तुलन ।
किन्तु भाषा, विधा एव छादरूपो की दृष्टि से वह महत्त्व. ६. मर्मस्थलों का संयोजन ।
पूर्ण कृति है । उस रचना का नाम है-'बारा भावना' । ७. उद्देश्य की दृष्टि से सभी प्रबन्ध काव्यो का सा- इसमे दोहा, चौपाई, मिश्रित गीता छन्द मे द्वादशानुदृश्य, किन्तु जीवन की प्राद्यन्त अन्वितिका पृथक्त्व- प्रेक्षापो का बडा ही मार्मिक वर्णन किया गया है। इस निरूपण ।
रचना की हिन्दी अपभ्रंश से प्रभावित है और उसके प्रबन्ध पाख्यानों के अतिरिक्त कवि ने 'सम्मत्तगुण- 'करउ', 'केरो' जैसे परसगों के प्रयोग उपलब्ध है। उसमे णिहाणकव्व', 'वित्तसार', 'सिद्धान्तार्थसार', जैसे दार्श- राजस्थानी ब्रज, बुन्देली एव बघेली, शब्दों के प्रयोग भी
पुनर्गठन ।