Book Title: Anekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 40
________________ नारी और जीवन-मूल्य : अपभ्रंश जैन साहित्य के संदर्भ में ३५ अवस्था ऐसी है जिसमें परम प्रकर्ष सम्भव नहीं, चाहे य; प्रश्न नही बल्कि एक प्रानुषंगिक प्रश्न ही कहा जाना पुण्यात्मक हो, चाहे पापात्मक, इमोलिा तो नारी एक चाहिए और फिर इा पश्न तक पहनने-पहनते जो अन्य पोर तो इतना घोर पाप नही कर सकती कि वह सप्तम प्रश्न उभरते है. ते यद्यपि विवादग्रस्त नही तथापि है नरक का बंध करे, दूमरी ओर वह भावों की शुद्धता के प्रत्यधिक विचारणीय ।। उस केन्द्र पर भी नही पहच सकती जहाँ मोक्ष का द्वार अपभ्रश के जैन साहित्य मे नारी अवस्था में मोक्ष उन्मुक्त होता है। जहां तक प्रागम ग्रन्थों में नारी-मोक्ष के उदाहरण अदृश्य हैं क्योकि वह अधिकतर दिगम्बर के उदाहरणों का प्रश्न है वे तथा कुछ अन्य सैद्धान्तिक साहित्यकारो की देन है। मान्यताएँ ही तो वह कारण है जिससे उन पागम ग्रन्थो नारी शिक्षा को एक समूचा वर्ग अमान्य करता है। शिक्षा का प्रचार जैन समाज में प्राचीन काल मे रहा नारी की मोक्ष-प्राप्ति के विषय में उपर्युक्त तर्क-वितर्क है। कन्याओं के लिए ललित व लानों की शिक्षा का विशेष का विश्लेषण अत्यन्त महज पौर तटस्थ भाव की अपेक्षा प्रावधान था। वे नत्य सगीत, वाद्य प्रादि मे न केवल पारंगत रखता है। इसमें सन्देह नही कि नारी-शरीर की मंरचना होती थीं प्रत्युत टमको प्रतियोगिताएं भी प्रायोजित पुरुप शरीर में कुछ ऐमी भिन्न है कि वह दुस्साध्य माधना करती थी। ये प्रतियोगिताएं मोद्देश्य की होती थी। प्रादि के लिए अनुकूल नहीं दिखती, तथापि जीवमात्र में काश्मीर की राजकुमारी त्रिभवनति ने नागकुमार का समान। के हामी मिद्वान्त मे मानवमात्र की समानता वरण इमलिए किया कि वह उममे वीणा-बावन म पराजित का थोड़ा भी प्रभाव तर्कसंगत प्रतीत नही होता। हो गयी। नागकुमार का एक अन्य विवाह मेपुर की नारी पोर पुरुष की इम असमानता के मूल मे जो गजकूमारी निलकामन्दरी से इमलिए हुमा कि उगने नृत्य तक छिपा है वह वस्तुतः किसी और ही मान्यता से मे उमके पदचाप गे मिला कर अपना मृदग बजाकर उसे सम्बन्ध रखता है, यह मान्यता तो उस मान्यता के फल- निरुत्तर कर दिया। उज्जयिनी के राजा प्रजापालन स्वरूप ही अस्तित्व में पायी दिखती है। वह मान्यता है अपनी गुणवती कन्या सुरसुन्दरी को पढ़ाने के लिए एक मवस्त्र मोक्ष के प्रभाव की। परिग्रहके प्रभाव को पराकाष्ठा द्विजवर के पाम भना और इन्द्राणी को जीतने वाली के रूप जो नग्नता पाती है वह मोक्ष का एक अनिवार्य दूसरी कन्या मदनसुन्दरी को भी इसी उद्देश्य से एक कारण है, ऐगी दिगम्बर जन मान्यता है श्वेताम्बर जैन मुनिवर के पास ले जाने का प्रादेश दिया। गुरमुन्दरी मान्यता मे नग्नता शब्द के बदले अचलत्व शब्द का प्रयोग इस प्रकार पढ़ती कि नगके सामने कोई भी विद्वान उत्तर हुपा है । अचेल शब्द के दो अर्थ सम्भव हैं, वस्त्र का नही दे पाता । वह इतनी निष्णात हो गयी जितना दृढ़प्रभाव और वस्त्र की यथामाध्य अल्पता। इनमें से दूसरे प्रतिज्ञ प्रौर अत्यन्त बुद्धिमान व्यक्ति निष्णात हो जाता अर्थ के प्राधार से श्वेताम्बर जैन मान्यता नारी की मोक्ष- है। उम- व्याकरण, छन्द प्रोर नाटक समझ लिये। प्राप्ति का अाधार लेती है । तात्पर्य यह कि नारी की मोक्ष- निघण्टु तर्कशास्त्र और लक्षणशास्त्र ममझ लिया और प्राप्ति के पक्ष या विपक्ष में और जितने भी तर्क दिये जाते अमरकोप तथा अलकार शोभा भी । उसने निस्मीम है वे या तो प्रानुषंगिक होते हैं या सामयिक या मापेक्षः प्रागम और ज्योतिष ग्रन्थ भी समझ लिये। मख्य वस्तुत: एक ही तक ऐसा है जो विचारणीय है। वह तर्क बहत्तर कलाये भी उसने जान लीं । उसी प्रकार है नग्नता का और वह तर्क चूकि एक अलग ही मान्यता से चौरासी खण्ड-विज्ञान भी। फिर उसने गाथा, दोहा और जड़ा है, इसलिए नारी की मोक्ष प्राप्ति का प्रश्न एक मौलिक छप्पय का स्वरूप जान लिया। उसने चौरामी बन्यो का १ पुष्पदन्त . णायकुमारचरिउ, नई दिल्ली, १६७२, १०८३, स० ५, १०६ । २ पुष्पदन्त : पूर्वोक्त, पृ०१३५, स. ८, क०८। ३. नरसेन : सिरिवालचरिउ, नई दिल्ली, १९७४, पृ० ७, स० १, क. ५।

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