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कबीर को पानी में बार-बाणी की गूंज
के रंग में रंगे चौले से उम्मुक्त होने का संदेश था जिसे
'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण कवीर ने 'संतो! जागत नींद न कीज' कहा।
प्रकाशन स्थान-बीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली वैसे कबीर के प्रत्येक पद, दोहे और साखियों मे मुद्रक-प्रकाशक-वीर सेवा मन्दिर के निमित्त प्राध्यात्मिक पुट है। माया, मोह, भ्रम, प्रज्ञान, इच्छामों प्रकाशन प्रवधि-त्रैमासिक श्री मोमप्रकाश जैन मादि के बारे मे प्रतीकात्मक शैली में पद प्रोर साखिया | राष्ट्रिकता--भारतीय पता-२१, दरियागज, दिल्ली-२ है। परन्तु यहाँ एक दृष्टि में उनकी अन्तस् को छूती हुई | सम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन राट्रिकता-भारतीय उन भावनामों की झलक दिखाई गई है, जो लगती है कि पता-वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ वह प्रभू वीर की ही वाणी है। सच है-एक सच्चे सत स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ का हश्य खले प्रकाश की भांति होता है।
मैं, मोमप्रकाश जैन, एतद्वारा घोषित करता ह कि
मेरी पूर्ण जानकारी एव विश्वास के अनुसार उपयुक्त 000
विवरण सत्य है। -पोमप्रकाश जैन, प्रकाशक
(पृ० ४८ का शेषांश) का उद्देश्य पूर्ण होने में पुरुषार्थ करने पर और फल मिलने जो अन्तराल है, वही भाग्य का, नियति का भ्रम पैदा करता में कुछ अन्तराल होता है। किसान खेत बोता है और तीन- है। कभी-कभी तो वह अन्तराल इतना अधिक हो जाता है चार मास बाद फसल मिलती है। यदि किसी ने उसको खेत कि मादि-अन्त कल्पना मे ही नहीं प्रा पाता। तब प्रक्ल बोते नहीं देखा । तो फसल मिलने पर कहे उसका है कि काम नहीं करती कि यह जो हुमा सो क्यों हमा और किसके खाली जमीन मे से उसे गेहूं का भण्डार मिल गया। वह किए हुए हुा । तब वह मान कर बैठ जाता है कि प्रभ भण्डार किसी भगवान का, किसी देवी-देवता का, किसी के किए हुमा, मेरे भाग्य मे ऐसा ही था। परन्त बिना अन्य देवी शक्ति का दान नहीं है, कृपा नही है। उसके पुरुषार्थ के कुछ मिलता नही, कुछ होता नही, जो कुछ भी पूर्व कर्म (पुरुषार्थ) का फल है जो उसे भाग्यरूप मिला मिल रहा है, हो रहा है, किसी न किसी पूर्व पुरुषार्थ से है। खेत न बोता तो पर्चना-प्रार्थना, जप-तप, मंत्र-तत्र अवश्य जुड़ा है। प्रागे क्या चाहिए उसका उद्देश्य निर्धारित कोई भी उसे गेहं का भण्डार उपलब्ध कराने में समर्थ करो, उसको पाने के सहो पुरुषार्थ का अध्ययन करो और नही था।
उसी में लगे रहो। फल तो नियम के अनुसार मिलेगा ही, भगवान कृष्ण के निष्काम कर्म के दर्शन का भी यही इसमें सन्देह नहीं है, परन्तु स्मरण रहे कि विपरीत पुरुषार्थ पर्थ होना चाहिए कि सही उद्देश्य निर्धारित करके, सही से भी सही फल कभी नही मिलेगा । यह उद्देश्य निर्धारण पुरुषार्थ करो, फल तो नियम के अनुसार मिलेगा ही। सम्मग्दर्शन, उसकी प्राप्ति के मार्ग का अध्ययन, सम्माज्ञान उसकी चिन्ता तुम्हे नही करनी पड़ेगी और उसके अलावा और उसे प्राप्त करने का पुरुषार्थ सम्यक चारित्र है। चाहे जितनी चिन्ता करते रहना कुछ मिलेगा ही नहीं,
वीर सेवा मन्दिर कदापि नहीं। पुरुषार्थ करने तथा उद्देश्य को पूर्ति में
२१, दरियागज, नई दिल्ली-२