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अपवालों की उत्पत्ति
कवि रहघ ने भी अपने अनेकों ग्रन्थों में अग्रवालों का गांव प्रादि के नाम पर गोत्र और जाति कल्पना परिचय उनके कुटम्ब-परिकर के साथ दिया है। दो प्रथों उपजातियो का इतिवृत्त दसवी शताब्दी से पूर्व का का उल्लेख निम्न प्रकार है :
नहीं मिलता। हो सकता है कि कुछ उपजातियां पूर्ववर्ती बोरवाल सहि हमयकू, विह पवग्व बुद्ध सोणय बकु। रही हों। इन उपजानियों और उनके गोत्रादि का विकास वीण, नियजलण विहलोहम विणयलीणु। ग्रामों पोर नगरी ग्राति के नाम पर हमा है, उदाहर
_ --बलहद पुराण णार्थ, खण्डेला से खण्डेलवाल, मोसा से पोसवाल, बर्षरा भानोय बंश णहससि दाणाविहाणेण णाह खेयंहो। मे बघेरावाल (व्याघवाल), पाली से पल्लीवाल, पा. बयणमण क्यतोखो हालू माहुस्स पंगमोविदियो।। बती से पद्मावतीपुरवाल, इसी तरह अग्रोहा से प्रवाल,
.- वित्तसार' चदरी के निवामी होने के कारण चदरिया, चन्द्रवार से मोलहवी शताब्दी के कवि महाचन्द और माणिक्य- नान्दुवाड । विभिन्न कार्य करने से भी लोगो की विविध चन्द ने अपने ग्रन्थो मे अग्रवालों का निम्म शब्दो मे नामो मे ख्याति देखी जाती है। पटवार गिरीको उल्लेख किया है :
पटवारी, सोने का कार्य करने से मोनी या सुवर्णकार को 'भयरबाल सघह सुह भाव उ, गग्ग गोत्त-णिम्मल गुणमायर। प्रसिद्धि होती है ।
-शान्तिनाथ पुराण गाँव के नाम पर गोत्र कल्पना कैसे की जाती थी, प्रयरवाल स्पसद्ध विभामिन, सिंघनगोत्त उ सुषणममामि। इमका एक उदाहरण १७वी शताब्दी के पडित बनारसी.
दास के प्रवधानक मे जात होता है और वह इस प्रकार इन दोनो कवियों के ग्रन्थों का रचनाकाल स. १५७ ह - मध्यदेश के रोहतकपुर के निकट बोहोली नाम का
एक गांव था, जिसमे राजवंशी राजपूतों का निवास पा। पौर १५७६ है।
वे गुरु प्रसाद से जैनी हो गये और उन्होंने अपना पापमय इन सब उल्लेखों से अग्रवाल शन्द की प्राचीनता
क्रियाकाण्ड छोड दिया, णमोकार मात्र को माला पहनी, पौर महत्ता पर प्रकाश पड़ता है। ये सब उल्लेख जैन
अतएव उनका कुल श्रीमाल बताया गया। और गोत्र गांव पग्रवालों के है। पप जनपद या प्रदेश के निवासी होने
के नाम पर बिहोलिया रक्या गया, जैसा कि अर्धकथानक के कारण अग्रवाल कहे जाते है। अग्रसेन राजा को मनान
के निम्न पदों से प्रगट है :--- परम्परा के कारण अग्रवाल नहीं कहे जाते ।।
याही भरत सुखेत में, मध्यदेश शुभ ठाऊं। 'अग्रवालों' में दो शब्द जुड़े हुए हैं-'प्रय' जोर 'वाल'। बसं नगर रोहतकपुर, निकट बिहोली गाऊँ। इनमें अन शब्द देश या जनपद का वाचक है और वाल ते गुरुमुख जनी भए, त्यागि काम प्रधभूत । शब्द उनके पूर्व निवास का सूचक है। जिस तरह कोई पहरी माला मन्त्र की, पायो कुल श्रीमाल । व्यक्ति कलकत्ता से दिल्ली मे जाये तो उसे कलकतिया थाम्यो गौत्र बिहीलिया, बीहोली रखपाल । या कलकत्तं वाला कहा जाता है, या किसी अन्य स्थान
--मर्धकथाक पर बस जाने पर उसे अन्य स्थान वाला कहा जायगा, इसी तरह अन्य जातियों के गोत्रादि के सम्बन्ध में इसी तरह राजस्थान के खण्डेला से खण्डेलवालो का विचार करना चाहिए। उपजातियों के गोत्रों की कल्पना निकास हुमा है। खण्डला के निवासी होने से उन्हें खण्डेल- जदी-जुही है। जैन समाज में उपलब्ध उपजातियां व बाल कहा जाता है। पाली वासी होने के कारण पल्ली- गोवादि भिन्न-भिन्न है। इसी तरह वैष्णव सम्प्रदाय को बाल, पथावती नगरी के निवासी होने के कारण से पद्मा. उपजातियों में भी गोत्र कल्पना भिन्न-भिन्न पायी वतीपुर वाल कहा जाता है। यहां बाल शब्द स्पष्ट रूप जाती है। अग्रवालों के १८ गोत्र बतलाये जाते हैं। उनमें से निवास का द्योतक है।
गर्ग, गोयल, मित्तल, सगल या सिंगल, बंसल, जिन्दल,