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भगवती -१/-/५/६२
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मायोपयुक्त और कोई लोभोपयुक्त होता है । अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त और लोभोपयुक्त होते हैं । अथवा कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त होता है, या कोईकोई क्रोधोपयक्त और बहुत-से मानोपयुक्त होते हैं । इत्यादि प्रकार से अस्सी भंग समझने चाहिए । इसी प्रकार यावत् दो समय अधिक जघन्य स्थिति से लेकर संख्येय समयाधिक जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों के लिए समझना । असंख्येय समयाधिक स्थिति वालों में तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए ।
[ ६३ ] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में रहनेवाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं । जघन्य अवगाहना ( अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना ) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना जानना ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा भोपयुक्त हैं ? गौतम ! जघन्य अवगाहना वालों में अस्सी भंग कहने चाहिए, यावत् संख्यात देश अधिक जघन्य अवगाहनावालों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए । असंख्यात - प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वाले और उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले, इन दोनों प्रकार के नारकों में संत्ताईस भंग कहने चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में बसनेवाले नारक जीवों के शरीर कितने हैं ? गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं- वैक्रिय, तैजस और कार्मण ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में बसने वाले वैक्रियशरीरी नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं इत्यादि ? गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । और इस प्रकार शेष दोनों शरीरों (तैजस और कार्मण) सहित तीनों के संबंध में यही बात (आलापक) कहनी चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास बसने वाले नैरयिकों के शरीरों का कौन-सा संहनन है ? गौतम ! उनका शरीर संहननरहित है, उनके शरीर में हड्डी, शिरा और स्नायु नहीं होती । जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल नारकों के शरीर संघातरूप परिणत होते हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में के प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छ संहननों में से जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् अथवा भोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके सत्ताईस भंग कहने चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में के प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ? गौतम ! उन नारकों का शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, और जो शरीर उत्तरवैक्रियरूप हैं, वे भी हुण्डकसंस्थान वाले कहे गए हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डकसंस्थान में वर्तमान नारक क्या