Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 240
________________ भगवती-८/-/१०/४३५ २३९ होता है, कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित नहीं होता । यदि आवेष्टित-परिवेष्टित होता है तो वह नियमतः अनन्त अविभाग-परिच्छेदों से होता है । भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव का प्रत्येक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभाग-परिच्छेदों से आवेष्टित-परिवेष्टित होता है ? गौतम ! वह नियमतः अनन्त अविभाग-परिच्छेदों से जिस प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए; परन्तु विशेष इतना है कि मनुष्य का कथन (सामान्य) जीव की तरह करना चाहिए । भगवन् ! प्रत्येक जीव का प्रत्येक जीव-प्रदेश दर्शनावरणीयकर्म के कितने अविभागपरिच्छेदों से आवेष्टित-परिवेष्टित है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म के समान यहां भी वैमानिक-पर्यन्त कहना ! इसी प्रकार अन्तरायकर्म-पर्यन्त कहना । विशेष इतना है कि वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्मों के विषय में नैरयिक जीवों के समान मनुष्यों के लिए भी कहना | शेष पूर्ववत् । [४३६] भगवन् ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म है, उसके क्या दर्शनावरणीयकर्म भी है और जिस जीव के दर्शनावरणीयकर्म है, उसके ज्ञानावरणीयकर्म भी है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है और जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीयकर्म भी है ? गौतम ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म है, उसके नियमतः वेदनीयकर्म है; किन्तु जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके ज्ञानावरणीयकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता है । भगवन् ! जिसके ज्ञानावरणीयकर्म है, क्या उसके मोहनीयकर्म है और जिसके मोहनीयकर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीयकर्म है ? गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीयकर्म है, उसके मोहनीयकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता; किन्तु जिसके मोहनीयकर्म है, उसके ज्ञानावरणीयकर्म नियमतः होता है । भगवन् ! जिसके ज्ञानावरणीयकर्म है, क्या उसके आयुष्यकर्म होता है और जिसके आयुष्यकर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीयकर्म है ? गौतम ! वेदनीयकर्म समान आयुष्यकर्म के साथ कहना। इसी प्रकार नामकर्म और गोत्रकर्म के साथ भी कहना । दर्शनावरणीय के समान अन्तरायकर्म के साथ भी नियमतः परस्पर सहभाव कहना । __ भगवन् ! जिसके दर्शनावरणीयकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म होता है और जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके दर्शनावरणीयकर्म होता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म का भी कथन करना चाहिए । भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके मोहनीयकर्म है और जिस जीव के मोहनीयकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है ? गौतम ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके मोहनीयकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिस जीव के मोहनीयकर्म है, उसके वेदनीयकर्म नियमतः होता है । भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके आयुष्यकर्म है ? गौतम ! ये दोनों कर्म नियमतः परस्पर साथ-साथ होते हैं | आयुष्यकर्म के समान नाम और गोत्रकर्म के साथ भी कहना । भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके अन्तरायकर्म है ? गौतम ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता, परन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके वेदनीयकर्म नियमतः होता है । भगवन् ! जिस जीव के मोहनीयकर्म होता है, क्या उसके आयुष्यकर्म होता है, और

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