Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 239
________________ २३८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थानपरिणाम । भगवन् ! वर्णपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का कृष्ण वर्णपरिणाम यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम । इसी प्रकार गन्धपरिणाम दो प्रकार का रसपरिणाम पांच प्रकार का और स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का जानना । भगवन् ! संस्थानपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार कापरिमण्डलसंस्थानपरिणाम, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम | [४३३] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश द्रव्य है, द्रव्यदेश है, बहुत द्रव्य हैं, बहुत द्रव्य-देश हैं ? एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं, बहुत द्रव्य और द्रव्यदेश है, या बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं ? गौतम ! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बहुत द्रव्य नहीं, न बहुत द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश भी नहीं, यावत् बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश भी नहीं । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं, अथवा एक द्रव्यप्रदेश हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! कथंचित् द्रव्य हैं, कथञ्चित् द्रव्यदेश हैं, कथंचित् बहुतद्रव्य हैं, कथंचित् बहुत द्रव्यदेश हैं और कथंचित् एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं; परन्तु एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं, बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश नहीं, बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश के संबंध में प्रश्न हैं ? गौतम ! १. कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं; यावत् ७. कथञ्चित् बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं किन्तु बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं यह आठवां भंग नहीं कहें । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश विषयक प्रश्न ? गौतम ! १. कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं, यावत् ८. कथञ्चित् बहुत द्रव्य हैं और बहुत द्रव्यदेश हैं । चार प्रदेशों के समान पांच, छह, सात यावत् असंख्यप्रदेशों तक के विषय में कहना । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश विषयक प्रश्न ? गौतम ! पूर्ववत् 'कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, और बहुत द्रव्यदेश हैं'; तक आठों ही भंग कहने चाहिए । [४३४] भगवन् ! लोकाकाश के कितने प्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश हैं । भगवन् ! एक-एक जीव के कितने-कितने जीवप्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के जितने प्रदेश कहे गए हैं, उतने ही एक-एक जीव के जीवप्रदेश हैं । [४३५] भगवन् ! कर्मप्रकृतियां कितनी हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियां आठ-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियां हैं ? गौतम ! आठ । इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवों के आठ कर्मप्रकृतियों कहनी चाहिए । भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग-परिच्छेद हैं ? गौतम ! अनन्त अविभाग-परिच्छेद हैं । भगवन् ! नैरयिकों के ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभाग-परिच्छेद हैं ? गौतम ! अनन्त अविभाग-परिच्छेद हैं । भगवन् ! इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवों के ज्ञानावरणीयकर्म के भी अनन्त अविभाग-परिच्छेद हैं । जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म के अविभाग-परिच्छेद कहे हैं, उसी प्रकार वैमानिक - पर्यन्त सभी जीवों के अन्तराय कर्म तक आठों कर्मप्रकृतियों के अविभाग-परिच्छेद कहना । भगवन् ! प्रत्येक जीव का प्रत्येक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभागपरिच्छेदों से आवेष्टित परिवेष्टित है ? हे गौतम ! वह कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित

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