Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 277
________________ २७६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद किल्विषिकदेव रूप में उत्पन्न होते हैं । तीन पल्योपम की स्थिति वालों में, तीन सागरोपम की स्थिति वालों में, अथवा तेरह सागरोपम की स्थिति वालों में । भगवन् ! किल्विषिक देव उन देवलोकों से आय का क्षय होने पर, भवक्षय होने पर और स्थिति का क्षय होने के बाद च्यवकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कुछ किल्विषिकदेव, नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के चार-पांच भव करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात् सिद्धबुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं और कितने ही किल्विषिकदेव अनादि, अनन्त और दीर्ध मार्ग वाले चार गतिरूप संसार-कान्तार में परिभ्रमण करते हैं । __भगवन् ! क्या जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, रूक्षाहारी, तुच्छाहारी, अरसजीवी, विरसजीवी यावत् तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी और विविक्तजीवो था ? हाँ, गौतम ! जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था । भगवन् ! यदि जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था, तो काल के समय काल करके वह लान्तककल्प में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देव के रूप में क्यों उत्पन्न हुआ ? गौतम ! जमालि अनगार आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक तथा आचार्य और उपाध्याय का अपयश करने वाला और उनका अवर्णवाद करने वाला था, यावत् वह मिथ्याभिनिवेश द्वारा अपने आपको, दूसरों को और उभय को भ्रान्ति में डालने वाला और दुर्विदग्ध बनाने वाला था, यावत् बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर, अर्द्धमासिक संलेखना से शरीर को कृश करके तथा तीस भक्त का अनशन द्वारा छेदन कर उस अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही, उसने काल के समय काल किया, जिससे वह लान्तक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न हुआ । [४७०] भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होने पर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पांच भव ग्रहण करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक-९ उद्देशक-३४ । [४७१] उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । वहाँ भगवान् गौतम ने यावत् भगवान् से पूछा-भगवन् ! कोई पुरुष पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता है अथवा नोपुरुष की भी घात करता है ? गौतम ! वह पुरुष का भी घात करता है और नोपुरुष का । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही पुरुष को मारता हूँ; किन्तु वह एक पुरुष को मारता हुआ अन्य अनेक जीवों को भी मारता है । इसी दृष्टि से ऐसा कहा जाता है । भगवन् ! अश्व को मारता हुआ कोई पुरुष क्या अश्व को ही मारता है या नो अश्व मारता है ? गौतम ! वह अश्व को मारता है और नोअश्व को भी मारता है । भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? गौतम ! इसका उत्तर पूर्ववत् समझना चाहिए । इसी प्रकार हाथी, सिंह, व्याघ्र चित्रल तक समझना चाहिए । भगवन् ! कोई पुरुष किसी एक त्रस प्राणी को मारता हुआ क्या उसी त्रसप्राणी को

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