Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 278
________________ भगवती - ९/-/३४/४७१ मारता है, अथवा उसके सिवाय अन्य त्रसप्राणियों को भी मारता है । गौतम ! वह उस प्राणी को भी मारता है और अन्य त्रसप्राणियों को भी मारता है । भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि वह पुरुष उस त्रसजीव को भी मारता है और अन्य सजीवों को भी मार देता है । गौतम ! उस त्रसजीव को मारने वाले पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं उसी सजीव को मार रहा हूँ, किन्तु वह उस सजीव को मारता हुआ, उसके सिवाय अन्य अनेक सजीवों को भी मारता है । इसलिए, हे गौतम! ऐसा कहा है । २७७ भगवन् ! कोई पुरुष ऋषि को मारता हुआ क्या ऋषि को ही मारता है, अथवा नोॠषि को भी मारता है ? गौतम ! वह ऋषि को भी मारता है, नोॠषि को भी मारता है । भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? गौतम ! ऋषि को मारने वाले उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ऋषि को मारता हूँ; किन्तु वह एक ऋषि को मारता हुआ अनन्त जीवों को मारता है । इस कारण हे गौतम! पूर्वोक्त रूप से कहा गया है । भगवन् ! पुरुष को मारता हुआ कोई भी व्यक्ति क्या पुरुष- वैर से स्पृष्ट होता है, अथवा नोपुरुष- वैर से स्पृष्ट भी होता है ? गौतम ! वह व्यक्ति नियम से पुरुषवैर से स्पृष्ट होता ही है । अथवा पुरुषवैर से और नोपुरुषवैर से स्पृष्ट होता है, अथवा पुरुषवैर से और नोपुरुषवैरों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार अश्व से लेकर यावत् चित्रल के विषय में भी जानना चाहिए; यावत् अथवा चित्रलवैर से और नोचित्रलवैरों से स्पृष्ट होता है । भगवन् ! ऋषि को मारता हुआ कोई पुरुष क्या ऋषिवैर से स्पृष्ट होता है, या नोॠषिवैर से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह नियम से ऋषिवैर और नोॠषिवैरों से स्पृष्ट होता है । [४७२] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ? हाँ, गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव को यावत् श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? हाँ, गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव को ग्रहण करता और छोड़ता है । इसी प्रकार तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव को भी यावत् ग्रहण करता और छोड़ता है । भगवन् ! अप्कायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं ? गौतम ! पूर्वोक्तरूप से जानना चाहिए । भगवन् ! अप्कायिक जीव, अप्कायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? (हाँ, गौतम !) पूर्वोक्तरूप से जानना चाहिए । इसी प्रकार तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के विषय में भी जानना चाहिए । भगवन् ! तेजस्कायिक जीव पृथ्वीकायिकजीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? ( गौतम! ) यह सब पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! कदाचित् तीन

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