Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 284
________________ भगवती - १०/-/४/४८७ २८३ हैं? हाँ, हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? हे श्यामहस्ती ! उस काल उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में काकन्दी नाम की नगरी थी । उस काकन्दी नगरी में सहायक तेतीस गृहपति श्रमणोपासक रहते थे । वे धनाढ्य यावत् अपरिभूत थे । वे जीव- अजीव के ज्ञाता एवं पुण्यपाप को हृदयंगम किए हुए विचरण करते थे । एक समय था, जब वे परस्पर सहायक गृहपति श्रमणोपासक पहले उग्र, उग्र-विहारी, संविग्न, संविग्नविहारी थे, परन्तु तत्पश्चात् वे पार्श्वस्थ, पार्श्वस्थविहारी, अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील, कुशीलविहारी, यथाच्छन्द और यथाच्छन्दविहारी हो गए । बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर, अर्धमासिक संलेखना द्वारा शरीर को कृश करके तथा तीस भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करके, उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के अवसर पर काल कर वे असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए हैं । ( श्यामहस्ती गौतमस्वामी से ) - भगवन् ! जब से काकन्दीनिवासी परस्पर सहायक तेतीस गृहपति श्रमणोपासक असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक - देवरूप में उत्पन्न हुए हैं, क्या तभी से ऐसा कहा जाता है कि असुरराज असुरेन्द्र चमर के (ये) तेतीस देव त्रास्त्रिंशक देव हैं ? तब गौतमस्वामी शंकित, कांक्षित एवं विचिकित्सत हो गए । वे वहाँ से उठे और श्यामहस्ती अनगार के साथ जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आए । श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया और पूछा भगवन् ! क्या असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? इत्यादि प्रश्न । पूर्वकथित त्रयस्त्रिंशक देवों का वृत्तान्त कहना यावत् वे ही चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिंश देव के रूप में उत्पन्न हुए । भगवन् ! जब से वे त्रायस्त्रिंशक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं क्या तभी से ऐसा कहा जाता है कि असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं; असुरराज असुरेन्द्र चमर त्रिंशक देव के नाम शाश्वत कहे गए हैं । इसलिए किसी समय नहीं थे, या नही है, ऐसा नहीं है और कभी नहीं रहेंगे, ऐसा भी नहीं है । यावत् अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से वे नित्य हैं, पहले वाले च्यवते हैं और दूसरे उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि त्रयस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में बिल नामक एक सन्निवेश था । उस बिभेल सन्निवेश में परस्पर सहायक तेतीस गृहस्थ श्रमणोपासक थे; इत्यादि वर्णन चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिंशकों वो समान ही जानना, यावत् वे त्रास्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए । शेष पूर्ववत् । वे अव्युच्छिति नय की अपेक्षा नित्य हैं । पुराने च्यवते रहते हैं, दूसरे उत्पन्न होते रहते हैं । भगवन् ! क्या नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक देवों के नाम शाश्वत कहे गये हैं । वे किसी समय नहीं थे, ऐसा नहीं है; नहीं रहेंगे - ऐसा भी नहीं; यावत् पुराने च्यवते हैं और नये उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार भूतानन्द इन्द्र, यावत् महाघोष इन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों के विषय में जानना | भगवन् ! क्या देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न । हाँ,

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