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भगवती-१०/-/२/४८१
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उसके मन में यह विचार उत्पन्न हो कि श्रमणोपासक भी काल के अवसर पर काल करके किन्ही देवलोकों में देवरूप में उत्पन्न हो जाते हैं, तो क्या मैं अणपन्निक देवत्व भी प्राप्त नहीं कर सकूँगा ?, यह सोच कर यदि वह उस अकृत्य स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल करे तो उसके आराधना नहीं होती । यदि वह आलोचना और प्रतिक्रमण करके करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१० उद्देशक-३ । [४८२] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! देव क्या आत्मवृद्धि द्वारा यावत् चारपांच देवावासान्तरों का उल्लंघन करता है और इसके पश्चात् दूसरी शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है ? हाँ, गौतम ! देव आत्मशक्ति से यावत् चार-पांच देवासों का उल्लंघन करता है और उसके उपरान्त (वैक्रिय) शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है । इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी समझना । विशेष यह कि वे असुरकुमारों के आवासों का उल्लंघन करते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमारपर्यन्त जानना । इसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवपर्यन्त जानना यावत् वे आत्मशक्ति से चार-पांच अन्य देवावासों का उल्लंघन करते हैं; इसके उपरान्त परकृद्धि से उल्लंघन करते हैं |
भगवन् ! अल्पकृद्धिकदेव, महर्द्धिकदेव के बीच में हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है | भगवन् ! समर्द्धिक देव समर्द्धिक देव के बीच में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; परन्तु यदि वह प्रमत्त हो तो जा सकता है । भगवन ! क्या वह देव, उस को विमोहित करके जा सकता है, या विमोहित किये विना ? गौतम ! वह देव, विमोहित करके जा सकता है, विमोहित किये विना नहीं । भगवन् ! वह देव, उस देव को पहले विमोहित करके बाद में जाता है, या पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ? गौतम ! पहले उसे विमोहित करता है और बाद में जाता है, परन्तु पहले जा कर बाद में विमोहित नहीं करता ।
भगवन् ! क्या महर्द्धिक देव, अल्पऋद्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ? हाँ, गौतम ! जा सकता है । भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उस अल्पवृद्धिक देव को विमोहित करके जाता है, अथवा विमोहित किये बिना जाता है ? गौतम ! वह विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है । भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके बाद में जाता है, अथवा पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ? गौतम ! वह महर्द्धिक देव, पहले उसे विमोहित करके बाद में भी जा सकता है और पहले जा कर बाद में भी विमोहित कर सकता है ।
भगवन् ! अल्प-ऋद्धिक असुरकुमार देव, महर्द्धिक असुरकुमार देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । इसी प्रकार सामान्य देव की तरह असुरकुमार के भी तीन आलापक कहना । इस प्रकार स्तनितकुमार तक तीन-तीन आलापक कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी ऐसे ही जानना ।।
भगवन् ! क्या अल्प-कृद्धिक देव, महर्द्धिक देवी के मध्य में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! क्या समर्द्धिक देव, समर्द्धिक देवी के बीचोंबीच