Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 238
________________ भगवती-८/-/१०/४३१ २३७ [४३१] भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार कीज्ञानाराधना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना | भगवन् ! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीनप्रकार की । इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीनप्रकार की है भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, और जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? गौतम ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट या मध्यम होती है । जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, जघन्य या मध्यम ज्ञानाराधना होती है । भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है और जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? गौतम ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के समान उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना । भगवन् ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? गौतम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारित्राराधना होती है और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके नियमतः उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है । भगवन् ! ज्ञान की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! कोई एक जीव उसी भव में सिद्ध होकर, कोई दो भव ग्रहण करके सिद्ध होकर यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । कोई जीव कल्पोपपन्न, कोई देवलोकों में अथवा कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! दर्शन की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! ज्ञानाराधना की तरह ही समझना चाहिए । भगवन् ! चारित्र की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । गौतम ! ज्ञानाराधना की तरह ही उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में कहना चाहिए । विशेष यह है कि कोई जीव कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होता है । भगवन ! ज्ञान की मध्यम-आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त कर देता है ? गौतम ! कोई जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है; किन्तु तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता । भगवन् ! दर्शन की मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! ज्ञान की मध्यम आराधना की तरह यहां कहना चाहिए । पूर्वोक्त प्रकार से चारित्र की मध्यम आराधना के विषय में कहना। भगवन् ! ज्ञान को जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! कोई जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है; परन्तु सात-आठ भव से आगे अतिक्रमण नहीं करता । इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना और जघन्य चारित्राराधना को भी कहना । [४३२] भगवन् ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का

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