Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 267
________________ २६६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद तो तेरा दर्शन दुर्लभ हो, इसमें कहना ही क्या ! इसलिए हे पुत्र ! हम तेरा क्षण भर का वियोग भी नहीं चाहते । इसलिए जब तक हम जीवित रहें, तब तक तू घर में ही रह । उसके पश्चात् जब हम कालधर्म को प्राप्त हो जाएँ, तेरी उम्र भी परिपक्क हो जाए, कुलवंश की वृद्धि का कार्य हो जाए, तब निरपेक्ष होकर तू गृहवास का त्याग करके श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित होकर अनगारधर्म में प्रव्रजित होना । तब क्षत्रियकुमार जमालि ने अपने माता-पिता से कहा- अभी जो आपने कहा किहे पुत्र ! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इष्ट, कान्त आदि हो, यावत् हमारे कालगत होने पर प्रव्रजित होना, इत्यादि; माताजी ! पिताजी ! यों तो यह मनुष्य-जीवन जन्म, जरा, मृत्यु, रोग तथा शारीरिक और मानसिक अनेक दुःखों की वेदना से और सैकड़ों कष्टों एवं उपद्रवों से ग्रस्त है । अध्रुव है, अनियत है, अशाश्वत है, सन्ध्याकालीन बादलों के रंग-सदृश क्षणिक है, जल - बुद्बुद के समान है, कुश की नोकर पर रहे हुए जलबिन्दु के समान है, स्वप्नदर्शन के तुल्य है, विद्युत्-लता की चमक के समान चंचल और अनित्य है । सड़ने, पड़ने, गलने और विध्वंस होने के स्वभाववाला है । पहले या पीछे इसे अवश्य ही छोड़ना पड़ेगा । अतः हे माता-पिता यह कौन जानता है कि कि हममें से कौन पहले जाएगा और कौन पीछे जाएगा ? इसलिए मैं चाहता हूँ कि आपकी अनुज्ञा मिल जाए तो मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास मुंडित होकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार कर लूं । यह बात सुन कर क्षत्रियकुमार जमालि से उसके माता-पिता ने कहा- हे पुत्र ! तुम्हारा यह शरीर विशिष्ट रूप, लक्षणों, व्यंजनों एवं गुणों से युक्त है, उत्तम बल, वीर्य और सत्त्व से सम्पन्न है, विज्ञान में विचक्षण है, सौभाग्य-गुण से उन्नत है, कुलीन है, महान् समर्थ है, व्याधियों और रोगों से रहित है, निरुपहत, उदात्त, मनोहर और पांचों इन्द्रियों की पटुता से युक्त है तथा प्रथम यौवन अवस्था में है, इत्यादि अनेक उत्तम गुणों से युक्त है । हे पुत्र ! जब तक तेरे शरीर में रूप, सौभाग्य और यौवन आदि उत्तम गुण हैं, तब तक तू इनका अनुभव कर । पश्चात् हमारे कालधर्म प्राप्त होने पर जब तेरी उम्र परिपक्व हो जाए और कुलवंश की वृद्धि का कार्य हो जाए, तब निरपेक्ष हो कर श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित हो कर अगारवास छोड़ कर अनगारधर्म में प्रव्रजित होना । तब क्षत्रियकुमार जमालि ने अपने मातापिता से कहा - हे माता-पिता ! आपने मुझे जो यह कहा कि पुत्र ! तेरा यह शरीर उत्तम रूप आदि गुणों से युक्त है, इत्यादि, यावत् हमारे कालगत होने पर तू प्रव्रजित होना । ( किन्तु ) यह मानव-शरीर दुःखों का घर है, अनेक प्रकार की सैकड़ों व्याधियों का निकेतन है, अस्थिरूप काष्ठ पर खड़ा हुआ है, नाड़ियों और स्नायुओं के जाल से वेष्टित है, मिट्टी के बर्तन के समान दुर्बल है । अशुचि से संक्लिष्ट है, इसको टिकाये रखने के लिए सदैव इसकी भ रखनी पड़ती है, यह सड़े हुए शव के समान और जीर्ण घर के समान है, सड़ना, पड़ना और नष्ट होना, इसका स्वभाव है । इस शरीर को पहले या पीछे अवश्य छोड़ना पड़ेगा; तब कौन जानता है कि पहले कौन जाएगा और पीछे कौन ? इत्यादि वर्णन पूर्ववत् यावत् - इसलिए मैं चाहता हूँ कि आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं प्रव्रज्या ग्रहण कर लूं । तब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने कहा- पुत्र ! ये तेरी गुणवल्लभा, उत्तम, तुझमें नित्य भावानुरक्त, सर्वांगसुन्दरी आठ पत्नियाँ हैं, जो विशाल कुल में उत्पन्न नवयौवनाएँ हैं, कलाकुशल हैं, सदैव लालित और सुखभोग के योग्य हैं । ये मार्दवगुण से युक्त, निपुण, विनय-व्यवहार में कुशल एवं विचक्षण । ये मंजुल, परिमित और मधुर भाषिणी हैं । ये हास्य, विप्रेक्षित, गति, विलास और

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