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भगवती-९/-/३३/४६५
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हाथ जोड़ कर जय-विजय - शब्दों से उसे बधाया । फिर उन्होंने उससे कहा - 'पुत्र ! बताओ, हम तुम्हें क्या दें ? तुम्हारे किस कार्य में क्या दें ? तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?' इस पर क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता से इस प्रकार कहा - हे माता-पिता ! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवाना चाहता हूँ और नापित को बुलाना चाहता हूँ ।
तब क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा"देवानुप्रियो ! शीघ्र ही श्रीघर से तीन लाख स्वर्णमुद्राएँ निकाल कर उनमें से एक-एक लाख सोया दे कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा एक लाख सोनैया देकर नापित को बुलो ।” क्षत्रियकुमार जमालि के पिता की उपर्युक्त आज्ञा सुन कर वे कौटुम्बिक पुरुष बहु ही हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । उन्होंने हाथ जोड़ कर यावत् स्वामी के वचन स्वीकार किए और शीघ्र ही श्रीघर से तीन लाख स्वर्णमुद्राएँ निकाल कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाए तथा नापित को बुलाया । फिर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के आदेश से कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा नाई को बुलाए जाने पर वह बहुत ही प्रसन्न और तुष्ट हुआ । उसने स्नानादि किया, यावत् शरीर को अलंकृत किया, फिर जहाँ क्षत्रियकुमार जमालि के पिता थे, वहाँ आया और उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया, फिर इस प्रकार कहा - "हे देवानुप्रिय ! मुझे करने योग्य कार्य का आदेश दीजिये ।”
इस पर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने उस नापित से कहा- हे देवानुप्रिय ! क्षत्रियकुमार माल के निष्क्रमण के योग्य अग्रकेश चार अंगुल छोड़ कर अत्यन्त यत्न- पूर्वक काट दो । क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के द्वारा यह आदेश दिये जाने पर वह नापित अत्यन्त हर्षित एवं तुष्ट हुआ और हाथ जोड़ कर यावत् बोला- 'स्वामिन्! आपकी जैसी आज्ञा है, वैसा ही होगा;" इस प्रकार उसने विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया । फिर सुगन्धित गन्धोदक हाथ-पैर धोए, आठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुंह बांधा और अत्यन्त यत्नपूर्वक क्षत्रियकुमार जमाल के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेशों को चार अंगुल छोड़ कर काटा ।
इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने शुक्लवर्ण के या हंस-चिह्न वाले वस्त्र की चादर में उन अग्रकेशों को ग्रहण किया । फिर उन्हें सुगन्धित गन्धोदक से धोया, फिर प्रधान एवं श्रेष्ठ गन्ध एवं माला द्वारा उनका अर्चन किया और शुद्ध वस्त्र में उन्हें बांध कर रत्नकरण्डक में रखा । इसके बाद जमालिकुमार की माता हार, जलधारा, सिन्दुवार के पुष्पों एवं टूटी हुई मोतियों की माला के समान पुत्र के दुःसह वियोग के कारण आंसू बहाती हुई इस प्रकार कहने लगी- “ ये हमारे लिए बहुत-सी तिथियों, पर्वों, उत्सवों और नागपूजादिरूप यज्ञों तथा महोत्सवादिरूप क्षणों में क्षत्रियकुमार जमालि के अन्तिम दर्शनरूप होंगे" - ऐसा विचार कर उन्हें अपने तकिये के नीचे रख दिया ।
इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने दूसरी बार भी उत्तरदिशाभिमुख सिंहासन रखवाया और क्षत्रियकुमार जमालि को चांदी और सोने के कलशों से स्नान करवाया । फिर रुएँदार सुकोमल गन्धकाषायित सुगन्धियुक्त वस्त्र से उसके अंग पोंछे । उसके बाद सरस शीर्षचन्दन का अंग प्रत्यंग पर लेपन किया । तदनन्तर नाक के निःश्वास की वायु से उड़ जाए, ऐसा बारीक, नेत्रों को आह्लादक लगने वाला, सुन्दर वर्ण और कोमल स्पर्श से युक्त, घोड़े के मुख की लार से भी अधिक कोमल, श्वेत और सोने के तारों से जुड़ा हुआ, महामूल्यवान् एवं हंस के चिह्न से युक्त पटशाटक पहिनाया । हार एवं अर्द्धहार पहिनाया । सूर्याभदेव के अलंकारों का वर्णन अनुसार समझना चाहिए, यावत् विचित्र रत्नों से जटित मुकुट