Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 259
________________ २५८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [४५६] भगवन् ! देव-प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार काभवनवासीदेव-प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक और वैमानिकदेवप्रवेशनक । भगवन् ! एक देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों में होता है ? गांगेय ! एक देव, देवप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ भवनवासी, या वाणव्यन्तर या ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में होता है । भगवन् ! दो देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या भवनवासी देवों में, इत्यादि प्रश्न | गांगेय ! वे भवनवासी देवों में, अथवा वाणव्यन्तर देवों में, या ज्योतिष्क देवों में होते हैं, या वैमानिक देवों में होते हैं । अथवा एक भवनवासी देवों में होता है, और एक वाणव्यन्तर देवों में होता है । तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक समान देव-प्रवेशनक भी असंख्यात देव-प्रवेशनक तक कहना चाहिए । भगवन् ! उत्कृष्टरूप से देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए किन देवों में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! वे सभी ज्योतिष्क देवों में होते हैं । अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी देवों में, अथवा ज्योतिष्क और वाणव्यन्तर देवों में, अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में । अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणव्यन्तर देवों में, अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक देवों में, अथवा ज्योतिष्क, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में । अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में होते हैं । [४५७] भगवन् ! भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकदेव-प्रवेशनक, इन चारों से कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से अल्प, यावत् विशेषाधिक है ? गांगेय ! सबसे थोड़े वैमानिकदेव-प्रवेशनक हैं, उनसे भवनवासीदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वाणव्यन्तरदेवप्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं और उनसे ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक संख्यातगुणे हैं । भगवन् ! इन नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव-प्रवेशनक, इन चारों में से कौन किससे अल्प, यावत् विशेषाधिक है । गांगेय ! सबसे अल्प मनुष्य-प्रवेशनक है, उससे नैरयिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, और उससे देव-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, और उससे तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है । [४५८] भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर ? यावत् वैमानिक देव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? (इसी तरह) नैरयिक का उद्धर्तन सान्तर होता है अथवा निरन्तर ? यावत् वाणव्यन्तर देवों का उद्वर्तन सान्तर होता है या निरन्तर ? ज्योतिष्क देवों का सान्तर च्यवन होता है या निरन्तर ? वैमानिक देवों का सान्तर च्यवन होता है या निरन्तर होता है ? हे गांगेय ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी, यावत् स्तनितकुमार सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । पृथ्वीकायिकजीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु निरन्तर ही उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार यावत वनस्पतिकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं । शेष सभी जीव नैरयिक जीवों के समान सान्तर भी उत्पन्न होते हैं, निरन्तर भी, यावत् वैमानिक देव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं, और निरन्तर भी । नैरयिक जीव सान्तर भी उद्धवर्तन करते हैं, निरन्तर भी । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिकजीव सान्तर नहीं उद्धवर्तते, निरन्तर उद्धवर्तित होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों

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