Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 260
________________ भगवती-९/-/३२/४५८ २५९ तक कहना । शेष सभी जीवों का कथन नैरयिकों के समान जानना । इतना विशेष है कि ज्योतिष्क देव और वैमानिक देव च्यवते हैं, ऐसा पाठ कहना चाहिए यावत् वैमानिक देव सान्तर भी च्यवते हैं और निरन्तर भी । भगवन् ! सत् नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं या असत् ? गांगेय ! सत् नैरयिक उत्पन्न होते हैं, असत् नैरयिक उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना । भगवन् ! सत् नैरयिक उद्धर्तते हैं या असत ? गांगेय ! सत नैरयिक उद्धर्तते हैं किन्तु असत नैरयिक उद्धर्तित नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना । विशेष इतना है कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए 'च्यवते हैं', ऐसा कहना | भगवन् ! नैरयिक जीव सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं या असत् नैरयिकों में ? असुरकुमार देव, सत् असुरकुमार देवों में उत्पन्न होते हैं या असत् असुरकुमार देवों में ? इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में उत्पन्न होते हैं या असत् वैमानिकों में ? तथा सत् नैरयिकों में से उद्धर्तते हैं या असत् नैरयिकों में से ? सत् असुरकुमारों में से उद्वर्तते हैं यावत् सत् वैमानिक में से च्यवते हैं या असत् वैमानिक में से ? गांगेय ! नैरयिक जीव सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु असत् नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते । सत् असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं, असत् असुरकुमारों में नहीं । इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में उत्पन्न होते हैं, असत् वैमानिकों में नहीं । सत् नैरयिकों में से उद्धर्तते हैं, असत् नैरयिकों में से नहीं । यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवते हैं असत् वैमानिकों में से नहीं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि नैरयिक सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, असत् नैरयिकों में नहीं । इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवते हैं, असत् वैमानिकों में से नहीं ? गांगेय ! निश्चित ही पुरुषादानीय अर्हत् श्रीपार्श्वनाथ ने लोक को शाश्वत, अनादि और अनन्त कहा है इत्यादि, पंचम शतक के नौवें उद्देशक में कहे अनुसार जानना, यावत्-जो अवलोकन किया जाए, उसे लोक कहते हैं । इस कारण हे गांगेय ! ऐसा कहा जाता है कि यावत् असत् वैमानिकों में से नहीं । भगवन् ! आप स्वयं इसे इस प्रकार जानते हैं, अथवा अस्वयं जानते हैं ? तथा बिना सुने ही इसे इस प्रकार जानते हैं, अथवा सुनकर जानते हैं कि 'सत् नैरयिक उत्पन्न होते हैं, असत् नैरयिक नहीं । यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवन होता है, असत् वैमानिकों से नहीं ?' गांगेय ! यह सब इस रूप में मैं स्वयं जानता हूँ, अस्वयं नहीं तथा बिना सुने ही मैं इसे इस प्रकार जानता हूँ, सुनकर ऐसा नहीं जानता कि सत् नैरयिक उत्पन्न होते हैं, असत नैरयिक नहीं, यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवते हैं, असत् वैमानिकों में से नहीं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है, कि मैं स्वयं जानता हूँ, इत्यादि, गांगेय ! केवलज्ञानी पूर्व में मित भी जानते हैं अमित भी जानते हैं । इसी प्रकार दक्षिण दिशा में भी जानते हैं । इस प्रकार शब्द-उद्देशक में कहे अनुसार कहना । यावत् केवली का ज्ञान निरावरण होता है, इसलिए हे गांगेय ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि मैं स्वयं जानता हूँ, इत्यादि, यावत् असत् वैमानिकों में से नहीं च्यवते । हे भगवन् ! नैरयिक, नैरयिकों में स्वयं उत्पन्न होते हैं या अस्वयं उत्पन्न होते हैं ? गांगेय ! नैरयिक, नैरयिकों में स्वयं उत्पन्न होते हैं, अस्वयं उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि यावत् अस्वयं उत्पन्न नहीं होते ? गांगेय ! कर्म के उदय से, कर्मों की गुरुता

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