Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 263
________________ २६२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद वह श्रमण भगवान् महावीर के पास पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक गया । वे पाँच अभिगम हैं-(१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि; द्वितीय शतक में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना से उपासना करने लगा। [४६१] देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत-सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका-वृन्द से परिवृत्त हो कर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक गमन किया । वे पाँच अभिगम हैं-सचित्त द्रव्यों का त्याग करना, अचित्त द्रव्यों का त्याग न करता, विनय से शरीर को अवनत करना, भगवान् के दृष्टिगोचर होते ही दोनों हाथ जोड़ना, मन को एकाग्र करना । जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आई और तीन वार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, फिर वन्दन-नमस्कार के बाद कृषभदत्त ब्राह्मण को आगे करके अपने परिवार सहित शुश्रूषा करती हुई, नमन करती हुई, सम्मुख खड़ी रह कर विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर उपासना करने लगी । तदनन्तर उस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनों में दूध आ गया । उसके नेत्र हर्षाश्रुओं से भीग गए । हर्ष से प्रफुल्लित होती हुई उसकी बाहों को बलयों ने रोक लिया । हर्षातिरेक से उसकी कञ्चुकी विस्तीर्ण हो गई । मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान उसका शरीर रोमाञ्चित हो गया । फिर वह श्रमण भगवान् महावीर को अनिमेष दृष्टि से देखती रही । भगवान् गौतम ने, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार किया और पूछा-भन्ते ! इस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनों से दूध कैसे निकल आया ? यावत् इसे रोमांच क्यों हो आया ? और यह आप देवानुप्रिय को अनिमेष दृष्टि से देखती हुई क्यों खड़ी है ? श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भगवान् गौतम से कहा-हे गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है । मैं देवानन्दा का आत्मज हूँ । इसलिए देवानन्दा को पूर्व-पुत्रस्नेहानुरागवश दूध आ गया, यावत् रोमाञ्च हुआ और यह मुझे अनिमेष दृष्टि से देख रही है । [४६२] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने ऋषभदत्तब्राह्मण और देवानन्दा तथा उस अत्यन्त बड़ी ऋषिपरिषद् को धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापस चली गई । इसके पश्चात् वह ऋषभदत्त ब्राह्मण, श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म-श्रमण कर और उसे हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट होकर खड़ा हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की, यावत् वन्दन-नमन करके इस प्रकार निवेदन किया-'भगवन् ! आपने कहा, वैसा ही है, आपका कथन यथार्थ है भगवन् !' इत्यादि स्कन्दक तापस-प्रकरण में कहे अनुसार; यावत्-'जो आप कहते हैं, वह उसी प्रकार है ।' इस प्रकार कह कर वह ईशानकोण में गया । वहाँ जा कर उसने स्वयमेव आभूषण, माला और अलंकार उतार दिये । फिर स्वयमेव पंचमुष्टि केशलोच किया और श्रमण भगवान् महावीर के पास आया । भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् नमस्कार करके इस प्रकार कहाभगवन् ! यह लोक चारों ओर से प्रज्वलित हो रहा है, भगवन् ! यह लोक चारों ओर से अत्यन्त जल रहा है, इत्यादि कह कर स्कन्दक तापस के अनुसार प्रव्रज्या ग्रहण की, यावत् सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, यावत् बहुत-से उपवास, बेला, तेला, चौला इत्यादि विचित्र तपःकर्मों से आत्मा को भावित करते हुए, बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया और एक मास की संल्लेखना से आत्मा को संलिखित करके. साठ भक्तों का अनशन से छेदन किया ओर ऐसा करके जिस उद्देश्य से ननभाव स्वीकार किया, यावत् आराधना कर ली, यावत् वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त एवं सर्वदुःखों से रहित हुए ।

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