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भगवती-९/-/४३८
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अश्रुत्वा, ३२. गांगेय, ३३. कुण्डग्राम, ३४. पुरुष । नौवें शतक में चौंतीस उद्देशक हैं ।
| शतक-९ उद्देशक-१ | [४३९] उस काल और उस समय में मिथिला नगरी थी । वहाँ माणिभद्र चैत्य था । महावीर स्वामी का समवसरण हुआ । परिषद् निकली । (भगवान् ने)-धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा-भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में कहे अनुसार-जम्बूद्वीप में पूर्व-पश्चिम समुद्र गामी कुल मिलाकर चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ हैं, ऐसा कहा गया है तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-९ उद्देशक-२ । [४४०] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा- भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना ।
[४४१] 'एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोड़ाकोड़ी तारों के समूह ।। [४४२] शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे' तक जानना चाहिए ।
[४४३] भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं और करेंगे ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्रानुसार तारों के वर्णन तक जानना ।
__धातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करवरद्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और मनुष्यक्षेत्र; इन सब में जीवाभिगमसूत्र के अनुसार-“एक चन्द्र का परिवार कोटाकोटी तारागण (सहित) होता है" तक जानना चाहिए ।
भगवन् ! पुष्करार्द्ध समुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे ? समस्त द्वीपों और समुद्रों में ज्योतिष्क देवों का जो वर्णन किया गया है, उसी प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-९ उद्देशक-३ से ३० | [४४४] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा- भगवन् ! दक्षिण दिशा का ‘एकोरुक' मनुष्यों का ‘एकोरुकद्वीप' नामक द्वीप कहाँ बताया गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में ‘एकोरुक' नामक द्वीप है !] जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के अनुसार इसी क्रम से शुद्धदन्तद्वीप तक (जान लेना ।) हे आयुष्यमन् श्रमण ! इन द्वीपों के मनुष्य देवगतिगामी कहे गए हैं । इस प्रकार अपनी-अपनी लम्बाईचौड़ाई के अनुसार इन अट्ठाईस अन्तर्वीपों का वर्णन कहना । विशेष यह है कि यहाँ एकएक द्वीप के नाम से एक-एक उद्देशक कहना । इस प्रकार इन अट्ठाईस अन्तीपों के अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-९ उद्देशक-३१ [४४५] राजगृह नगर में यावत् (गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा- भगवन् ! केवली,