Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 244
________________ भगवती-९/-/३१/४४५ २४३ संयम-करता है और कोई जीव नहीं करता है ? गौतम ! जिस जीव ने यतनावरणीयकर्म का क्षयोपशम किया हुआ है, वह केवली यावत् केवलि-पाक्षिक-उपासिका से सुने बिना ही शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है, किन्तु जिसने यतनावरणीयकर्म का क्षयोपशम नहीं किया है, वह केवली आदि से सुने बिना यावत् शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना नहीं करता । भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से धर्म-श्रवण किये बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध संवर द्वारा संवृत होता है ? गौतम कोई जीव शुद्ध संवर से संवृत होता है और कोई जीव शुद्ध संवर से संवृत नहीं होता है । भगवन् ! किस कारण से यावत् नहीं होता ? गौतम ! जिस जीव ने अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही, यावत शुद्ध संवर से संवृत हो जाता है, किन्तु जिसने अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं किया है, वह जीव केवली आदि से सुने बिना यावत् शुद्ध संवर से संवृत नहीं होता । इसी कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है। __भगवन् ! केवली आदि से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उपार्जन कर लेता है ? गौतम कोई जीव प्राप्त करता है और कोई नहीं प्राप्त करता । भगवन् ! किस कारण से यावत् नहीं प्राप्त करता ? गौतम ! जिस जीव ने आभिनिबोधिक-ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उपार्जन कर लेता है, किन्तु जिसने आभिनिबोधिक-ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपसम नहीं किया है, वह केवली आदि से सुने विना शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान का उपार्जन नहीं कर पाता | भगवन् ! केवली आदि से सुने बिना ही क्या कोई जीव श्रुतज्ञान उपार्जन कर लेता है ? (गौतम !) आभिनिबोधिकज्ञान के समान शुद्ध श्रुतज्ञान में भी कहना । विशेष इतना कि यहाँ श्रुतज्ञानावरणीयकर्मों का क्षयोपशम कहना । इसी प्रकार शुद्ध अवधिज्ञान के उपार्जन के विषय में कहना । विशेष यह कि यहाँ अवधिज्ञानावरणीयकर्म का क्षयोपशम कहना । इसी प्रकार शुद्ध मनःपर्ययज्ञान के उत्पन्न होने के विषय में कहना । विशेष इतना कि मनःपर्ययज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम का कथन करना । भगवन् ! केवली यावत् केवलि पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव केवलज्ञान उपार्जन कर लेता है ? पूर्ववत् यहाँ भी कहना । विशेष इतना कि यहाँ केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय कहना । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक-उपासिका के पास से धर्मश्रवण किये बिना ही क्या कोई जीव केवलि-प्ररूपित धर्म-श्रवण-लाभ करता है ? शुद्ध बोधि प्राप्त करता है ? मुण्डित होकर अगारवास से शुद्ध अनगारिता को स्वीकार करता है ? शुद्ध ब्रह्मचार्यवास धारण करता है ? शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है ? शुद्ध संवर से संवृत होता है ? शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उत्पन्न करता है, यावत् शुद्ध मनःपर्यवज्ञान तथा केवलज्ञान उत्पन्न करता है ? गौतम ! कोई जीव केवलि-प्ररूपित धर्म-श्रमण का लाभ पाता है, कोई जीव नहीं पाता है । कोई जीव शुद्ध बोधिलाभ प्राप्त करता है, कोई नहीं प्राप्त करता है । कोई जीव मुण्डित हो कर अगारवास से शुद्ध अनगारधर्म में प्रव्रजित होता है और कोई प्रव्रजित नहीं होता है । कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण करता है और कोई धारण नहीं करता है । कोई जीव शुद्ध संयम से संयम-यतना करता है और कोई नहीं करता है । कोई जीव शुद्ध संवर से संवृत

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