Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ २४६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद होते हैं तो गर्ता में अथवा गुफा में होते है तथा संहरण की अपेक्षा पातालकलशों में अथवा भवनवासी देवों के भवनों में होते हैं । यदि तिर्यग्लोक में होते हैं तो पन्द्रह कर्मभूमि में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा अढाई द्वीप और समुद्रों के एक भाग में होते हैं । भगवन् ! वे असोच्चा केवली एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दस होते हैं । इसलिए हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से धर्मश्रवण किये बिना ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण प्राप्त होता है और किसी को नहीं होता; यावत् कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न कर लेता है और कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता । [४५०] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से श्रवण कर क्या कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म-बोध प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई जीव प्राप्त करता है और कोई जीव प्राप्त नहीं करता । इस विषय में असोचा के समान ‘सोच्चा' की वक्तव्यता कहना । विशेष यह कि सर्वत्र ‘सोचा' ऐसा पाठ कहना । शेष पूर्ववत् यावत् जिसने मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है तथा जिसने केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय किया है, वह यावत् धर्मवचन सुनकर केवलिप्ररूपित धर्म-बोध प्राप्त करता है, शुद्ध बोधि का अनुभव करता है, यावत् केवलज्ञान प्राप्त करता है ।। निरन्तर तेले-तेले तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए प्रकृतिभद्रता आदि गुणों से यावत् ईहा, अपोह, मार्गण एवं गवेषण करते हुए अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है । वह उस उत्पन्न अवधिज्ञान के प्रभाव से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अलोक में भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है । भगवन् ! वह (अवधिज्ञानी जीव) कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । भंते ! वह कितने ज्ञानों में होता है ? गौतम ! तीन या चार ज्ञानों में | यदि तीन ज्ञानों में होता है, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में होता है । यदि चार ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिकज्ञान, यावत् मनःपर्यवज्ञान में होता है । भगवन् ! वह सयोगी होता है अथवा अयोगी ? गौतम जैसे 'असोचा' के योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, ऊँचाई और आयुष्य के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी योगादि के विषय में कहना । भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सवेदी होता है अथवा अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है अवेदी भी होता है । भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या उपशान्तवेदी होता है अथवा क्षीणवेदी होता है ? गौतम ! वह उपशान्तवेदी नहीं होता, क्षीणवेदी होता है । भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है इत्यादि पृच्छा गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी होता है अथवा पुरुष-नपुंसकवेदी होता है । भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सकषायी होता है अथवा अकषायी ? गौतम ! वह सकषायी भी होता है, अकषायी भी होता है । भगवन् ! यदि वह अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी ? गौतम ! वह उपशान्तकषायी नहीं होता, किन्तु क्षीणकषायी होता है । भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है तो कितने कषायों में होता है ? गौतम ! वह चार, तीन, दो अथवा एक कषाय में होता है । यदि वह चार कषायों में होता

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290