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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होते हैं तो गर्ता में अथवा गुफा में होते है तथा संहरण की अपेक्षा पातालकलशों में अथवा भवनवासी देवों के भवनों में होते हैं । यदि तिर्यग्लोक में होते हैं तो पन्द्रह कर्मभूमि में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा अढाई द्वीप और समुद्रों के एक भाग में होते हैं ।
भगवन् ! वे असोच्चा केवली एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दस होते हैं । इसलिए हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से धर्मश्रवण किये बिना ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण प्राप्त होता है और किसी को नहीं होता; यावत् कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न कर लेता है और कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता ।
[४५०] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से श्रवण कर क्या कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म-बोध प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई जीव प्राप्त करता है और कोई जीव प्राप्त नहीं करता । इस विषय में असोचा के समान ‘सोच्चा' की वक्तव्यता कहना । विशेष यह कि सर्वत्र ‘सोचा' ऐसा पाठ कहना । शेष पूर्ववत् यावत् जिसने मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है तथा जिसने केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय किया है, वह यावत् धर्मवचन सुनकर केवलिप्ररूपित धर्म-बोध प्राप्त करता है, शुद्ध बोधि का अनुभव करता है, यावत् केवलज्ञान प्राप्त करता है ।।
निरन्तर तेले-तेले तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए प्रकृतिभद्रता आदि गुणों से यावत् ईहा, अपोह, मार्गण एवं गवेषण करते हुए अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है । वह उस उत्पन्न अवधिज्ञान के प्रभाव से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अलोक में भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है ।
भगवन् ! वह (अवधिज्ञानी जीव) कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । भंते ! वह कितने ज्ञानों में होता है ? गौतम ! तीन या चार ज्ञानों में | यदि तीन ज्ञानों में होता है, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में होता है । यदि चार ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिकज्ञान, यावत् मनःपर्यवज्ञान में होता है । भगवन् ! वह सयोगी होता है अथवा अयोगी ? गौतम जैसे 'असोचा' के योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, ऊँचाई और आयुष्य के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी योगादि के विषय में कहना ।
भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सवेदी होता है अथवा अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है अवेदी भी होता है । भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या उपशान्तवेदी होता है अथवा क्षीणवेदी होता है ? गौतम ! वह उपशान्तवेदी नहीं होता, क्षीणवेदी होता है । भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है इत्यादि पृच्छा गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी होता है अथवा पुरुष-नपुंसकवेदी होता है ।
भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सकषायी होता है अथवा अकषायी ? गौतम ! वह सकषायी भी होता है, अकषायी भी होता है । भगवन् ! यदि वह अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी ? गौतम ! वह उपशान्तकषायी नहीं होता, किन्तु क्षीणकषायी होता है । भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है तो कितने कषायों में होता है ? गौतम ! वह चार, तीन, दो अथवा एक कषाय में होता है । यदि वह चार कषायों में होता