Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 200
________________ भगवती-८/-/१/३८६ १९९ है ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहनासंस्थान पद अनुसार यहां भी कृद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्कमनुष्य-आहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, किन्तु आहारकलब्धि को अप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्ययेवर्षायुष्य-मनुष्यहारक-शरीरकायप्रयोगपरिणत नहीं होता तक कहना । भगवन् ! यदि एक द्रव्य आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह मनुष्याहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अमनुष्याहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! आहारकशरीरकायप्रयोग-परिणत (एक द्रव्य) के अनुसार आहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना । भगवन् ! यदि एक द्रव्य कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रिय-कार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? हे गौतम ! वह एकेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहना संस्थानपद में कार्मण के भेद कहे गए हैं, उसी प्रकार यहाँ भी पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्तसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है (तक भेद कहना) । भगवन् ! यदि एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है, तो क्या वह मनोमिश्रपरिणत होता है. या वचनमिश्रपरिणत होता है, अथवा कायमिश्रपरिणत होता है ? गौतम ! वह मनोमिश्रपरिणत भी होता है, वचनमिश्रपरिणत भी होता है, कायमिश्र-परिणत भी होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनोमिश्रपरिणत होता है, तो क्या वह सत्यमनोमिश्रपरिणत होता है, मृषामनोमिश्रपरिणत होता है, सत्य-मृषामनोमिश्रपरिणत होता है, अथवा असत्य-अमृषामनोमिश्रपरिणत होता है ? गौतम ! प्रयोगपरिणत एक द्रव्य के अनुसार मिश्रपरिणत एक द्रव्य के विषय में भी पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायमिश्रपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियकार्मणशरीरकायमिश्रपरिणत होता है तक कहना । भगवन् ! यदि एक द्रव्य विस्त्रसा (से) परिणत होता है , तो क्या वह वर्णपरिणत होता है, गन्धपरिणत होता है, रसपरिणता होता है, स्पर्शपरिणत होता है, अथवा संस्थानपरिणत होता है ? गौतम ! वह वर्णपरिणत होता है, अथवा यावत् संस्थानपरिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य वर्णपरिणत होता है तो क्या वह कृष्णवर्ण के रूप में परिणत होता है, अथवा यावत् शुक्लवर्ण के रूप में है ? गौतम ! वह कृष्ण वर्ण के रूप में भी परिणत होता है, यावत् शुक्लवर्ण के रूप में । भगवन् ! यदि एक द्रव्य गन्धपरिणत होता है तो वह सुरभिगन्ध रूप में परिणत होता है, अथवा दुरभिगन्धरूप में ? गौतम ! वह सुरभिगन्धरूप में भी परिणत होता है, अथवा दुरभिगन्धरूप में भी । भगवन् ! यदि एक द्रव्य रसरूप में परिणत होता है, तो क्या वह तीखे रस के रूप में परिणत होता है, अथवा यावत् मधुररस के रूप में । गौतम ! वह तीखे रस के रूप में भी परिणत होता है, अथवा यावत् मधुररस के रूप में भी । भगवन् ! यदि एक द्रव्य स्पर्शपरिणत होता है तो क्या वह कर्कशस्पर्शरूप में परिणत होता है, अथवा यावत् रूक्षस्पर्शरूप में ? गौतम ! वह कर्कशस्पर्शरूप में भी परिणत होता है, अथवा यावत् रूक्षस्पर्शरूप में भी । भगवन् ! यदि एक द्रव्य संस्थान-परिणत होता है, तो क्या वह परिमण्डल-संस्थानरूप में परिणत होता है,

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