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भगवती-८/-/८/४१४
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पुरुषपश्चात्कृत जीव यावत् २६-बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्कृत जीव और बहुत नपुंसकपश्चात्कृत जीव बांधते हैं ? गौतम ! ऐर्यापथिक कर्म (१) स्त्रीपश्चात्कृत जीव भी बांधता है, (२) पुरुषपश्चात्कृत जीव भी बांधता है, (३) नपुंसकपश्चात्कृत जीव भी बांधता है, (४) स्त्री पश्चात्कृत जीव भी बांधते हैं, (५) पुरुषपश्चात्कृत जीव भी बांधते हैं, (६) नपुंसकपश्चात्कृत जीव भी बांधते हैं; अथवा (७) एक स्त्रीपश्चात्कृत जीव और एक पुरुषपश्चात्कृत जीव भी बांधता है अथवा यावत् (२६) बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्कृत जीव और बहुत नपुंसकपश्चात् कृत जीव भी बांधते हैं ।
____ भगवन् ! क्या जीव ने (ऐपिथिक कर्म) १–बांधा है, बांधता है और बांधेगा; अथवा २-बांधा है, बांधता है, नहीं बांधेगा; या ३-बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा; अथवा ४-बांधा है, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा, या ५-नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगा, अथवा ६नहीं बांधा, बांधता है नहीं बांधेगा, या ७ नहीं बांधा, नहीं बांधता, बांधेगा; अथवा ८-न बांधा, न बांधता है, न बांधेगा ? गौतम ! भवाकर्ष की अपेक्षा किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है और बांधेगा; किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है, और नहीं बांधेगा; यावत् किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा । इस प्रकार सभी (आठों) भंग यहाँ कहने चाहिए । ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा (१) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, बांधेगा; यावत् (५) किसी एक जीव ने नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगा यहाँ तक कहना । इसके पश्चात् छठा भंग-नहीं बांधा, बांधता नहीं है, बांधेगा; नहीं कहना चाहिए । (तदनन्तर सातवां भंग)-किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा और आठवां भंग एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा (कहना) ।
भगवन् ! जीव ऐपिथिक कर्म क्या सादि-सपर्यवसित बांधता है, या सादिअपर्यवसित बांधता है, अथवा अनादि-सपर्यवसित बांधता है, या अनादि-अपर्यवसित बांधता है ? गौतम! जीव ऐपिथिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादि-अपर्यवसित नहीं बांधता, अनादि-सपर्यवसित नहीं बांधता और न अनादि-अपर्यवसित बांधता है । भगवन् ! जीव ऐयापथिक कर्म देश से आत्मा के देश को बांधता है, देश से सर्व को बांधता है, सर्व से देश को बांधता है या सर्व से सर्व को बांधता है ? गौतम ! वह ऐर्यापथिक कर्म देश से देश को नहीं बांधता, देश से सर्व को नहीं बांधता, सर्व से देश को नहीं बांधता, किन्तु सर्व से सर्व को बांधता है ।
[४१५] भगवन् ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बांधता है, तिर्यञ्च या यावत् देवी बांधती है ? गौतम ! नैरयिक भी बांधता हैं; तिर्यञ्च भी बांधता है, तिर्यञ्च-स्त्री भी बांधती है, मनुष्य भी बांधता है, मानुषी भी बांधती है, देव भी बांधता है और देवी भी बांधती है । भगवन् ! साम्परायिक कर्म क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, यावत् नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक बांधता है ? गौतम ! स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है, यावत् बहुत नपुंसक भी बांधते हैं, अथवा ये सब और अवेदी एक जीव भी बांधता है, अथवा ये सब और बहुत अवेदी जीव भी बांधते हैं । भगवन् ! यदि वेदरहित एक जीव और वेदरहित बहुत जीव साम्परायिक कर्म बांधते हैं तो क्या स्त्रीपश्चात्कृत जीव बांधता है या पुरुषपश्चात्कृत जीव बांधता है ? गौतम ! जिस प्रकार ऐपिथिक कर्मबंधक के सम्बन्ध में छव्वीस भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ