Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 233
________________ २३२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद और उत्कृष्टतः अनन्तकाल-वनस्पतिकाल तक होता है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जानना । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकरूप में रहा हुआ जीव, रत्नप्रभापृथ्वी के सिवाय अन्य स्थानों में उत्पन्न हो और पुनः रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप से उत्पन्न हो तो उस का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहर्त अधिक दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का होता है । देशबंध का अन्तर जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल का होता है । इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक जानना । विशेष इतना है कि सर्वबंध का जघन्य अन्तर जिस नैरयिक की जितनी जघन्य स्थिति हो, उससे अन्तमुहूर्त अधिक जानना । शेष पूर्ववत् । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों और मनुष्यों के सर्वबंध का अन्तर वायुकायिक के समान जानना । असुरकुमार, नागकुमार स सहस्त्रार देवों तक के वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिकों के समान जानना । विशेष इतना है कि जिसकी जो जघन्य स्थिति हो, उसके सर्वबंध का अन्तर, उससे अन्तमुहूर्त अधिक जानना । शेष पूर्ववत् । __ भगवन् ! आनतदेवलोक के देव संबंधि पृच्छा गौतम ! उसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य वर्ष-पृथक्त्वअधिक अठारह सागरोपम का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का, देशबंध के अन्तर का काल जघन्य वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट अनंतकाल का होता है । इसी प्रकार अच्युत देवलोक तक के वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध का अन्तर जानना । विशेष इतना ही है कि जिसकी जितनी जघन्य स्थिति हो, सर्वबंधान्तर में उससे वर्षपृथक्त्व-अधिक समझना । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! ग्रैवेयककल्पातीत-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्यतः वर्षपृथक्त्व-अधिक २२ सागरोपम और उत्कृष्टतः अनन्तकाल- । देशबंध का अन्तर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्टतः वनस्पतिकाल | अनुत्तरौपपातिकदेव संबंधि प्रश्न । गौतम ! उसके सर्वबंध का अंतर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व-अधिक इकतीस सागरोपम का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है । देशबंध का अंतर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है । __ भगवन् ! वैक्रियशरीर के इन देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े वैक्रियशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं । भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक प्रकार का है । भगवन् ! आहारकशरीर-प्रयोगबंध एक प्रकार का है, तो वह मनुष्यों के होता है अथवा अमनुष्यों के ? गौतम ! मनुष्यों के होता है, अमनुष्यों के नहीं होता । इस प्रकार 'अवगाहनासंस्थान-पद' में कहे अनुसार यावत्-ऋद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिज-गर्भज-मनुष्य के आहारकशरीरप्रयोगबंध होता है, परन्तु अनृद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क० के नहीं होता है । ___भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्दव्यता, यावत् (आहारक-) लब्धि के निमित्त से आहारकशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से आहारकशरीरप्रयोगबंध होता है । भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध होता है, अथवा सर्वबंध ? गौतम ! वह देशबंध भी होता है, सर्वबंध भी । भगवन् !

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