Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 232
________________ भगवती-८/-/९/४२५ २३१ से होता है ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकों की तरह समझना । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना चाहिए । इसी प्रकार वाणव्यन्तर तथा ज्योतिष्कदेवों के विषय में जानना । इसी प्रकार सौधर्मकल्पोपपन्नक-वैमानिकदेवों से अच्युतकल्पोपपन्नक-वैमानिकदेवों, ग्रैवेयककल्पातीत-वैमानिकदेवों तथा अनुत्तरौपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेवों के विषय में भी जान लेना चाहिए । भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है, अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध भी है, सर्वबंध भी है । भगवन् ! वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिकवैक्रियशरीरप्रयोगबंध देशबंध है या सर्वबंध ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिककल्पातीत-वैमानिक देवों तक समझना । भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध, कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है । भगवन् ! वायुकायिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः दो समय तक रहता है तथा देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तमुहूर्त रहता है । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध एक समय तक और देशबंध जघन्यतः तीन समय कम दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्टतः एक समय कम एक सागरोपम तक रहता है । इसी प्रकार अधःसप्तमनरकपृथ्वी तक जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी जघन्य स्थिति हो, उसमें तीन समय कम जघन्य देशबंध तथा जिसकी जितनी उत्कृष्ट स्थिति हो, उसमें एक समय कम उत्कृष्ट देशबंध जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य का कथन वायुकायिक के समान जानना चाहिए । असुरकुमार, नागकुमार से अनुत्तरौपपातिकदेवों तक का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए । परन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी स्थिति हो, उतनी कहनी चाहिए तथा अनुत्तरौपपातिकदेवों का सर्वबंध एक समय और देशबंध जघन्य तीन समय कम इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक होता है । भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्त कालतः कितने काल का होता है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल है-यावत्-आवलिका के असंख्यातवें भाग के समयों के बराबर पुद्गलपरावर्तन रहता है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना चाहिए । भगवन् ! वायुकायिक-वैक्रियशरीर प्रयोगबंध संबधि पृच्छा । गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग होता है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना । भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध पृच्छा, गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व का होता है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना चाहिए । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी (पूर्ववत्) जान लेना चाहिए । भगवन् ! वायुकायिक-अवस्थागत जीव वायुकायिक के सिवाय अन्य काय में उत्पन्न हो कर पुनः वायुकायिक जीवों में उत्पन्न हो तो उसके वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! उसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः अन्तमुहूर्त

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