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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
नोपृथ्वीकायिक- अवस्था में उत्पन्न हो, पुनः पृथ्वीकायिकरूप में आए, तो पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रियऔदारिकशरीर-प्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! सर्वबंधान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लकभव ग्रहण काल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल होता है । कालतः अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल है, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्येय पुद्गल - परावर्तन हैं । वे पुद्गल - परावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण हैं । देशबंध का अन्तर जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहणकाल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल,... यावत् 'आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण पुद्गल - परावर्तन है'; पृथ्वीकायिक जीवों के प्रयोगबंधान्तर समान वनस्पतिकायिक जीवों को छोड़कर यावत् मनुष्यों के प्रयोगबंधान्तर तक समझना । वनस्पतिकायिक जीवों के सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः काल की अपेक्षा से तीन समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण काल और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल है, अथवा असंख्येय उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी है, क्षेत्रतः असंख्येय लोक है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहण का है और उत्कृष्टतः पृथ्वीकायिक स्थितिकाल है ।
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भगवन् ! औदारिक शरीर के इन देशबंधक सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं उनसे अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे देशबंधक जीव असंख्यात गुणे हैं । [४२५] भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है । एकेन्द्रियवैक्रियशरीर- प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर- प्रयोगबंध |
भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय- वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय- वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है ? गौतम ! इस प्रकार के अभिलाप द्वारा अवगाहनासंस्थानपद में वैक्रियशरीर के जिस प्रकार भेद कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध' तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है । गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता, यावत् आयुष्य अथवा लब्धि की अपेक्षा तथा वैक्रियशरीर-प्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! वायुकायिक- एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता यावत् आयुष्य और लब्धि की अपेक्षा में तथा वायुकायिक- एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है ।
भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता, यावत् आयुष्य की अपेक्षा से तथा रत्नप्रभा पृथ्वीनैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । इसी प्रकार अधः सप्तम नरकपृथ्वी तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक- (पंचेन्द्रिय) वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता यावत् आयुष्य और लब्धि को लेकर तथा तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से वह होता है । भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! (पूर्ववत्) जान लेना ।
भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासीदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय