Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 235
________________ २३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उत्पन्न न करने से तथा सातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तक कहना । भगवन् ! असातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दूसरे जीवों को दुःख पहुँचाने से इत्यादि, सातवें शतक के अनुसार यहाँ भी, उन्हें परिताप उत्पन्न करने से तथा असातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तक कहना । भगवन् ! मोहनीयकर्मशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! तीव्र क्रोध से, तीव्र मान से, तीव्र माया से, तीव्र लोभ से, तीव्र दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्रमोहनीय से तथा मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! नैरयिकायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! महारम्भ करने से, महापरिग्रह से, पञ्चेन्द्रिय जीवों का वध करने से और मांसाहार करने से तथा नैरयिकायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक आयुष्यकार्मण-शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! माया करने से, निकृति करने से, मिथ्या बोलने से, खोटा तौल और खोटा माप करने से तथा तिर्यञ्चयोनिकआयुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! प्रकृति की भद्रता से, प्रकृति की विनीतता से, दयालुता से, अमत्सरभाव से तथा मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सरागसंयम से, संयमासंयम से, बाल तपस्या से तथा अकामनिर्जरा से एवं देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! शुभनामकार्मणशरीरपयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! काया की, भावों की, भाषा की ऋजुता से तथा अविसंवादनयोग से एवं शुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से | भगवन् ! अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! काया की भावों की, भाषा की वक्रता से तथा विसंवादनयोग से एवं अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद न करने से तथा उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! जातिमद, यावत् ऐश्वर्यमद करने से तथा नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दानान्तराय से, लाभान्तराय से, भोगान्तराय से, उपभोगान्तराय से और वीर्यान्तराय से तथा अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मक उदय से । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं है । इसी प्रकार अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध तक जानना । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! यह दो प्रकार का है, के अनादि-सपर्यवसित और अनादि-अपर्यवसित । तैजसशरीर प्रयोगबंध समान यहाँ भी कहना । इसी प्रकार अन्तरायकर्म तक कहना।

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