________________
२२४
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भी कहना चाहिए; यावत् (२६) बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्कृत जीव और बहुत नपुंसकपश्चात्कृत जीव बांधते हैं ।
भगवन् ! साम्परायिक कर्म (१) किसी जीव ने बांधा, बांधता है और बांधेगा ? (२) बांधा, बांधता है और नहीं बांधेगा ? (३) बांधा, नहीं बांधता है और बांधेगा ? तथा (४) बांधा, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? गौतम ! (१) कई जीवों ने बांधा, बांधते हैं और बांधेगे; (१) कितने ही जीवों ने बांधा, बांधते हैं और नहीं बांधेगे; (३) कितने ही जीवों ने बांधा है, नहीं बांधते हैं और बांधेगे; (४) कितने ही जीवों ने बांधा है, नहीं बांधते हैं और नहीं बांधेगे ।
भगवन् ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए । गौतम ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, अनादि-सपर्यवसित बांधता है, अनादि-अपर्यवसित बांधता है; किन्तु सादि-अपर्यवसित नहीं बांधता । भगवन् साम्परायिक कर्म देश से आत्मदेश को बांधता है ? गौतम ! ऐपिथिक कर्मबंध के समान साम्परायिक कर्मबंध के सम्बन्ध में भी जान लेना, यावत् सर्व से सर्व को बांधता है ।।
[४१६] भगवन् ! कर्मप्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियां आठ कही गई हैं, यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय ।।
भगवन् ! परीषह कितने कहे गए हैं ? गौतम ! परीषह बावीस कहे गए है, वे इस प्रकार-१. क्षुधा-परीषह, २. पिपासा-परीषह यावत् २२-दर्शन-परीषह । भगवन् ! इन बावीस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समावेश हो जाता है ? गौतम ! चार कर्मप्रकृतियों में इन २२ परीषहों का समवतार होता है, इस ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय ।.
__ भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! दो परीषहों का यथा-प्रज्ञापरीषह और ज्ञानपरीषह (अज्ञानपरीषह) । भगवन् ! वेदनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! ग्यारह परीषहों का ।।
[४१७] पहले पांच (क्षुधा, शीत, उष्ण और देशमशक), चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और जल्ल परीषह । इन का समवतार वेदनीय कर्म में होता है ।
[४१८] भगवन् दर्शनमोहनीयकर्ममें कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है ।
[४१९] भगवन् ! चारित्रमोहनीयकर्ममें कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! सात परीषहों का-अरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना, आक्रोश, सत्कार-पुरस्कार ।
[४२०] भगवन् ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! एक अलाभपरीषह का समवतार होता है ।
भगवन् ! सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले जीव के कितने परीषह हैं ? गौतम ! बावीस । परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता तथा जिस समय चर्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय निषद्यापरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय निषद्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता । भगवन् ! आठ प्रकार के