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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अथवा यावत् आयत-संस्थानरूप में । गौतम ! वह द्रव्य परिमण्डल-संस्थानरूप में भी परिणत होता है, अथवा यावत् आयतसंस्थानरूप में भी ।
[३८७] भगवन् दो द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्त्रसापरिणत होते हैं ? गौतम ! वे प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्त्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा मिश्रपरिणत होता है; या एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्त्रसापरिणत होता है, अथवा एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दूसरा विस्त्रसापरिणत होता है । इस प्रकार छह भंग होते हैं । यदि वे दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? गौतम ! वे (दो द्रव्य) या तो मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा उनमें से एक द्रव्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा वचनप्रयोगपरिणत होता है, अथवा एक द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा कायप्रयोगपरिणत होता है या एक द्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा कायप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या असत्य-मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा सत्यमृषामनःप्रयोग-परिणत होते हैं, या असत्यामृषा-मनःप्रयोगपरिणत होते हैं ? गौतम ! वे (दो द्रव्य) सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, यावत् असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होते हैं; या उनमें से एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोग-परिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होता है; अथवा एक द्रव्य मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या एक द्रव्य मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होता है अथवा एक द्रव्य सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि वे सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या वे आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं या यावत् असमारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं ? गौतम ! वे द्रव्य आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा यावत् असमारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं; अथवा एक द्रव्य आम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा अनारम्भसत्य-मन प्रयोगपरिणत होता है; इसी प्रकार इस पाठ के अनुसार द्विकसंयोगी भंग करने चाहिए । जहा जितने भी द्विकसंयोग हो सकें, उतने सभी यहाँ सर्वार्थसिद्धवैमानिकदेव पर्यन्त कहना ।
भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मिश्रपरिणत होते हैं तो मनोमिश्रपरिणत होते हैं ?, प्रयोगपरिणत के अनुसार मिश्रपरिणत के सम्बन्ध में भी कहना । भगवन् ! यदि दो द्रव्य विस्त्रसा-परिणत होते हैं, तो क्या वे वर्णरूप से परिणत होते हैं, गंधरूप से परिणत होते हैं, (अथवा यावत् संस्थानरूप से परिणत होते हैं ?) गौतम ! जिस प्रकार पहले कहा गया है, उसी प्रकार विस्त्रसापरिणत के विषय में कहना चाहिए कि अथवा एक द्रव्य चतुरस्त्रसस्थानरूप से परिणत होता है, यावत् एक द्रव्य आयतसंस्थान रूप से परिणत होता है |
भगवन् ! तीन द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्त्रसापरिणत होते हैं ? गौतम ! तीन द्रव्य या तो १. प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत