Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 221
________________ २२० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ऐसा कथन है; इसलिए हे आर्यो ! तुमको दिया जाता हुआ पदार्थ, जब तक पात्र में नहीं पड़ा, तब तक बीच में से ही कोई उसका अपहरण कर ले तो तुम कहते हो-'वह उस गृहपति के पदार्थ का अपहरण हुआ;' 'हमारे पदार्थ का अपहरण हुआ,' ऐसा तुम नहीं कहते । इस कारण से तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, यावत् अदत्त की अनुमति देते हो; अतः तुम अदत्त का ग्रहण करते हुए यावत् एकान्तबाल हो । यह सुनकर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा-'आर्यो ! हम अदत्त का ग्रहण नहीं करते, न अदत्त को खाते हैं और न ही अदत्त की अनुमति देते हैं । हे आर्यो ! हम तो दत्त पदार्थ को ग्रहण करते हैं, दत्त भोजन को खाते हैं और दत्त की अनुमति देते हैं । इसलिए हम त्रिविध-त्रिविध संयत, विरत, पापकर्म के प्रतिनिरोधक, पापकर्म का प्रत्याख्यान किये हुए हैं । सप्तमशतक अनुसार हम यावत् एकान्तपण्डित हैं ।' तब उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से कहा-'तुम किस कारण दत्त को ग्रहण करते हो, यावत् दत्त की अनुमति देते हो, जिससे दत्त का ग्रहण करते हुए यावत् तुम एकान्तपण्डित हो ?' इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा-'आर्यो ! हमारे सिद्धान्तानुसार दिया जाता हुआ पदार्थ, 'दिया गया'; ग्रहण किया जाता हुआ पदार्थ ‘ग्रहण किया' और पात्र में डाला जाता हुआ पदार्थ ‘डाला गया' कहलाता है । इसीलिए हे आर्यो ! हमें दिया जाता हुआ पदार्थ हमारे पात्र में नहीं पहुँचा है, इसी बीच में कोई व्यक्ति उसका अपहरण कर ले तो 'वह पदार्थ हमारा अपहृत हुआ' कहलाता है, किन्तु 'वह पदार्थ गृहस्थ का अपहृत हुआ,' ऐसा नहीं कहलाता । इस कारण से हम दत्त को ग्रहण करते हैं, दत्त आहार करते हैं और दत्त की ही अनुमति देते हैं । इस प्रकार दत्त को ग्रहण करते हुए यावत् दत्त की अनुमति देते हुए हम त्रिविध-त्रिविध संयत, विरत यावत् एकान्तपण्डित हैं, प्रत्युत, हे आर्यो ! तुम स्वयं त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्तबाल हो । तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने स्थविर भगवन्तों से पूछा-आर्यो ! हम किस कारण से त्रिविध-त्रिविध...यावत् एकान्तबाल हैं ? इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उस अन्यतीर्थकों से यों कहा-आर्यो ! तुम लोग अदत्त को ग्रहण करते हो, यावत् अदत्त की अनुमति देते हो; इसलिए हे आर्यो ! तुम अदत्त को ग्रहण करते हुए यावत् एकान्तबाल हो । तब उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से पूछा-आर्यो ! हम कैसे अदत्त को ग्रहण करते हैं यावत् जिससे कि हम एकान्तबाल हैं ? यह सुन कर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा-आर्यो ! तुम्हारे मत में दिया जाता हुआ पदार्थ 'नहीं दिया गया' इत्यादि कहलाता है, यावत् वह पदार्थ गृहस्थ का है, तुम्हारा नहीं; इसलिए तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, यावत् पूर्वोक्त प्रकार से तुम एकान्तबाल हो । तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से कहा-आर्यो ! तुम ही त्रिविधत्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो ! इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से पूछा-आर्यो ! किस कारण से हम त्रिविध-त्रिविध यावत् एकान्तबाल हैं ? तब उन अन्यतीर्थिकों ने कहा-“आर्यो ! तुम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हो, हनन करते हो, पादाभिघात करते हो, उन्हें भूमि के साथ श्लिष्ट करते हो, उन्हें एक दूसरे के ऊपर इकट्ठे करते हो, जोर से स्पर्श करते हो, उन्हें परितापित करते हो, उन्हें मारणान्तिक

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