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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जिस तरह जलचरों के चार आलापक कहे हैं, उसी प्रकार चतुष्पद, उरःपरिसर्प, भुजपरिसर्प एवं खेचरों (के प्रयोग-परिणत-पुद्गलों) के भी चार-चार आलापक कहने चाहिए ।
जो पुद्गल सम्मूर्छिम-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे औदारिक, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं । इसी प्रकार अपर्याप्तक-गर्भज-मनुष्य के विषय में भी कहना चाहिए । पर्याप्तक गर्भज-मनुष्य के विषय में भी इसी तरह कहना । विशेषता यह है कि इनमें (औदारिक से लेकर कार्मण तक) पंचशरीर-(प्रयोग-परिणत पुद्गल) कहना चाहिए ।
जो पुद्गल अपर्याप्तक असुरकुमार-भवनवासीदेव-प्रयोग-परिणत हैं, उनका आलापक नैरयिकों की तरह कहना । पर्याप्तक-असुरकुमारदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में भी इसी प्रकार जानना । स्तनितकुमार पर्यन्त पर्याप्तक-अपर्याप्तक दोनों में कहना । पिशाच से लेकर गन्धर्व तक वाणव्यन्तर-देव, चन्द्र से लेकर ताराविमान पर्यन्त ज्योतिष्क-देव और सौधर्मकल्प से लेकर अच्युतकल्प पर्यन्त तथा अधःस्तन-अधःस्तन-प्रैवेयक-कल्पातीत-देव से लेकर उपरितनउपरितन-उपरितन ग्रैवेयक-कल्पातीत-देव तक एवं विजय-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-देव से लेकर सर्वार्थसिद्ध-कल्पातीत-वैमानिक-देवों तक पर्याप्तक और अपर्याप्तिक दोनों भेदों में वैक्रिय, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत पुद्गल कहना ।
जो पुद्गल अपर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे स्पर्शेन्द्रियप्रयोग-परिणत हैं । जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं । जो अपर्याप्त-बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल हैं, वे भी इसी प्रकार समझने चाहिए । पर्याप्तक भी इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग परिणत समझने चाहिए । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त-प्रत्येक के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इन चार-चार भेदों में स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कहने चाहिए ।
जो पुद्गल अपर्याप्तक-द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं । इसी प्रकार पर्याप्तक भी जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक कहना । किन्तु एक-एक इन्द्रिय बढ़ानी चाहिए ।
__जो पुद्गल अपर्याप्त रत्नप्रभा (आदि) पृथ्वी नैरयिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे क्षोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रिय-घ्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं । इसी प्रकार पर्याप्तक पुद्गल के विषय में भी पूर्ववत् कहना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव, इन सबके विषय में भी इसी प्रकार कहना, यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिककल्पातीतदेव-प्रयोग-परिणत हैं, वे सब श्रोत्रेन्द्रिय, यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं ।
जो पुद्गल अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस-कार्मणशरीर-प्रयोगपरिणत हैं, वे स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं । जो पुद्गल पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय
औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं । अपर्याप्तबादरकायिक एवं पर्याप्तबादर-पृथ्वीकायिक-औदारिकादि शरीरत्रय-प्रयोगपरिणत-पुद्गल के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए । इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जिस जीव के जितनी इन्द्रियां और शरीर हों, उसके उतनी इन्द्रियों तथा उतने शरीरों का कथन करना चाहिए । यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तररौपपातिक-कल्पातीतदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-तैजसकार्मणशरीर-प्रयोग-परिणत हैं, वे श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं ।