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भगवती-३/-/१/१५६
शक्रेन्द्र के समस्त सामानिक देवों की ऋद्धि एवं विकुर्वणा शक्ति आदि के विषय में जानना चाहिए, किन्तु हे गौतम ! यह विकुर्वणाशक्ति देवेन्द्र देवराज शक्र के प्रत्येक सामानिक देव का विषय है, विषयमात्र है, सम्प्राप्ति द्वारा उन्होंने कभी इतनी विकुर्वणा की नहीं, करते नहीं, और भविष्य में करेंगे भी नहीं ।
शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल और अग्रमहिषियों के विषय में चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए । किन्तु इतना विशेष है कि वे अपने वैक्रियकृत रूपों से दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीपों को भरने में समर्थ हैं । शेष समग्र वर्णन चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए । हे 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर द्वितीय गौतम अग्निभूत अनगार यावत् विचरण करते हैं ।
[१५७] तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करके यावत् इस प्रकार कहा- भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र इतनी महाऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान कितनी महाक्रुद्धि वाला है, यावत् कितनी विकुर्वणा करने की शक्ति वाला है ?' (गौतम ! शक्रेन्द्र के समान), ही सारा वर्णन ईशानेन्द्र के विषय में जानना । विशेषता यह है कि वह सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप से कुछ अधिक स्थल को भर देता है । शेष वर्णन पूर्ववत् ।
[१५८] भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र इतनी बड़ी ऋद्धि से युक्त है, यावत् वह इतनी विकुर्वणाशक्ति रखता है, तो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत, तथा निरन्तर अट्टम की तपस्या और पारणे में आयम्बिल, ऐसी कठोर तपश्चर्या से आत्मा को भावित करता हुआ, दोनों हाथ ऊँचे रखकर सूर्य की ओर मुख करके आतापना - भूमि में आतापना लेने वाला आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुरुदत्तपुत्र अनगार, पूरे छह महीने तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके, अर्द्धमासिक संलेखना से अपनी आत्मा को संसेवित करके, तीस भक्त अनशन (संथारे) का पालन करके, आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधि प्राप्त करके मरण का अवसर आने पर काल करके, ईशानकल्प में, अपने विमान में, ईशानेन्द्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ है, इत्यादि वक्तव्यता, तिष्यक देव के समान कुरुदत्तपुत्र देव के विषय में भी कहनी चाहिए । विशेषता यह है कि कुरुदत्तपुत्रदेव की सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक स्थल को भरने की विकुर्वणाशक्ति है । शेष समस्त वर्णन उसी तरह ही समझना चाहिए ।
इसी तरह सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों के विषय में जानना चाहिए । यावत् - हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान की अग्रमहिषियों की इतनी यह विकुर्वणाशक्ति केवल विषय है, विषयमात्र है, परन्तु सम्प्राप्ति द्वारा कभी इतना वैक्रिय किया नहीं, करती नहीं, और भविष्य में करेगी भी नहीं ।
[१५९] इसी प्रकार सनत्कुमार देवलोक के देवेन्द्र के विषय में भी समझना चाहिए । विशेषता यह है कि ( सनत्कुमारेन्द्र की विकुर्वणाशक्ति) सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों जितने स्थल को भरने की है और तिरछे उसकी विकुर्वणाशक्ति असंख्यात (द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की) है । इसी तरह ( सनत्कुमारेन्द के) सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल एवं अग्रमहिषियों की विकुर्वणाशक्ति असंख्यात द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की है ।
सनत्कुमार से लेकर ऊपर के ( देवलोकों के ) सब लोकपाल असंख्येय द्वीप समुद्रों ( जितने स्थल) को भरने की वैक्रियशक्ति वाले हैं । इसी तरह माहेन्द्र के विषय में भी समझ