________________
भगवती-३/-/१/१५५
८३
विकुर्वणाशक्ति विषयमात्र कही है; यावत् वे विकुर्वणा करेंगी भी नहीं; यहाँ तक पूर्ववत् समझना । 'हे भगवन् ! जैसा आप कहते हैं, वह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह उसी प्रकार है,' यों कह कर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दननमस्कार किया और फिर न अतिदूर, और न अतिनिकट रहकर वे यावत् पर्युपासना करने लगे।
तत्पश्चात् द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार किया । वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाकृद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी कृद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?' गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महाकृद्धि वाला है, यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर, चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभाओं पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर, और चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक दाक्षिणात्य कुमार देवों और देवियों पर आधिपत्य, नेतृत्व, स्वामित्व यावत् करता हुआ रहता है । उसकी विकुर्वणाशक्ति इतनी है कि जैसे युवापुरुष युवती स्त्री के करग्रहण के अथवा गाड़ी के पहिये की धुरी में संलग्न आरों के दृष्टान्त से यावत् वह अपने द्वारा वैक्रियकृत बहुत-से नागकुमार देवों और नागकुमारदेवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तिर्यग्लोक के संख्येय द्वीप-समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है । परन्तु यावत् ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं । धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की वृद्धि आदि तथा वैक्रिय शक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कह लेना चाहिए । विशेषता इतनी ही है कि इन सबकी विकुर्वणाशक्ति संख्यात द्वीप-समुद्रों तक के स्थल को भरने की समझनी चाहिए ।
इसी तरह यावत् ‘स्तनितकुमारों तक सभी भवनपतिदेवों के सम्बन्ध में कहना चाहिए । इसी तरह समस्त वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों के विषय में कहना चाहिए । विशेष यह है कि दक्षिण दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार पूछते हैं और उत्तरदिशा के सभी इन्द्रों के विषय में तृतीय गौतम वायुभूति अनगार पूछते हैं ।
द्वितीय गणधर भगवान् गौतमगोत्रीय अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया । और (पूछा-) 'भगवन् ! यदि ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज ऐसी महाकृद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी महाकृद्धि वाला है और कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?' गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र महान् ऋद्धिवाला है यावत् महाप्रभावशाली है । वह वहाँ बत्तीस लाख विमानावासों पर तथा चौरासी हजार सामानिक देवों पर यावत् तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवों पर एवं दूसरे बहुत-से देवों पर आधिपत्य-स्वामित्व करता हुआ विचरण करता है । (अर्थात्-) शक्रेन्द्र ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है । उसकी वैक्रिय शक्ति के विषय में चमरेन्द्र की तरह सब कथन करना चाहिये; विशेष यह है कि दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप जितने स्थल को भरने में समर्थ है; और शेष सब पूर्ववत् है । हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की