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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
शरीर यावत् कर्म परिगृहीत किये हैं । तथा उनके टंक, कूट, शैल, शिखरी, एवं प्राग्भार परिगृहीत होते हैं । इसी प्रकार जल, स्थल, बिल, गुफा, लयन भी परिगृहीत होते हैं । उनके द्वारा उज्झर, निर्झर, चिल्लल, पल्लल तथा वप्रीण परिगृहीत होते हैं । उनके द्वारा कूप, तड़ाग, द्रह, नदी, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, सरोवर, सर-पंक्ति, सरसरपंक्ति, एवं बिलपंक्ति परिगृहीत होते हैं । तथा आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखण्ड, वनराजि, ये सब परिगृहीत किये हुए होते हैं 1 फिर देवकुल, सभा, आश्रम, प्याऊ, स्तूभ, खाई, खाई, ये भी परिगृहीत की होती हैं; तथा प्राकार, अट्टालक, चरिका द्वार, गोपुर, ये सब परिगृहीत किये होते हैं । इनके द्वारा प्रासाद, घर, सरण, लयन, आपण परिगृहीत किये जाते हैं । श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ परिग्रहीत होते हैं । शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका आदि परिगृहीत किये होते हैं । लौही, लोहे की कड़ाही, कुड़छी आदि चीजें
ग्रिहरूप में गृहीत होती हैं । इनके द्वारा भवन भी परिगृहीत होते हैं । देवदेवियाँ, मनुष्यनरनारियाँ, एवं तिर्यच नर-मादाएँ, आसन, शयन, खण्ड, भाण्ड एवं सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य परिगृहीत होते हैं । इस कारण से ये पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, किन्तु अनारम्भी - अपरिग्रही नहीं होते ।
- तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय जीवों के समान मनुष्यों के विषय में भी कहना ।
जिस प्रकार भवनवासी देवों के विषय में कहा, वैसे ही वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के ( आरम्भ - परिग्रहयुक्त होने के ) विषय में (सहेतुक) कहना चाहिए । [२६१] पाँच हेतु कहे गए हैं, (१) हेतु को जानता है, (२) हेतु को देखता है, (३) तु का बोध प्राप्त करता - (३) हेतु का अभिसमागम - अभिमुख होकर सम्यक् रूप से प्राप्तकरता है, और (५) हेतुयुक्त छद्मस्थमरणपूर्वक मरता है ।
पाँच हेतु (प्रकारान्तर से) कहे गए हैं । वे इस प्रकार - (१) हेतु द्वारा सम्यक् जानता है, (२) हेतु से देखता है; (३) हेतु द्वारा श्रद्धा करता है, (४) हेतु द्वारा सम्यक्तया प्राप्त करता है, और (५) हेतु से छद्मस्थमरण मरता है ।
पाँच हेतु (मिध्यादृष्टि की अपेक्षा से) कहे गए हैं । यथा - ( 9 ) हेतु को नहीं जानता, (२) हेतु को नहीं देखता (३) हेतु की बोधप्राप्ति नहीं करता, (४) हेतु को प्राप्त नहीं करता, और (५) हेतुयुक्त अज्ञानमरण मरता है ।
पाँच हेतु हैं । यथा - हेतु से नहीं जानता, यावत् हेतु से अज्ञानमरण मरता है । पांच अहेतु हैं - अहेतु को जानता है; यावत् अहेतुयुक्त केवलिमरण मरता है । पांच अहेतु हैं - अहेतु जानता है, यावत् अहेतु द्वारा केवलिमरण मरता है । पांच अहेतु हैं - अहेतु को नहीं जानता, यावत् अहेतुयुक्त छद्मस्थमरण मरता है । पांच अहेतु कहे गए हैं- (१) अहेतु से नहीं जानता, यावत् (५) अहेतु से छद्मस्थमरण मरता है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'।
शतक - ५
उद्देशक - ८
[२६२] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर पधारे । परिषद् दर्शन के लिये गई, यावत् धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई । उस काल और उस समय में