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भगवती-६/-/१/२७३
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शतक- ६ उद्देशक - १
[२७३] भगवन् ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरावाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा क्या महावेदना वाला और अल्पवेदना वाला, इन दोनों में वही जीव श्रेयान् (श्रेष्ठ) है, जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ? हाँ, गौतम ! जो महावेदना वाला है,... इत्यादि जैसा ऊपर कहा है, इसी प्रकार समझना चाहिए ।
भगवन् ! क्या छठी और सातवीं (नरक) पृथ्वी के नैरयिक महावेदना वाले हैं ? हाँ, गौतम ! वे महावेदना वाले हैं । भगवन् ! तो क्या वे (छठी-सातवीं नरकभूमि के नैरयिक) श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा भी महानिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
भगवन् ! तब यह कैसे कहा जाता है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है, यावत् प्रशस्त निर्जरा वाला है ? गौतम ! ( मान लो ) जैसे दो वस्त्र हैं । उनमें से एक कर्दम के रंग से रंगा हुआ है और दूसरा वस्त्र खंजन के रंग से रंगा हुआ है । गौतम ! इन दोनों वस्त्रों में कौन-सा वस्त्र मुश्किल से धुल सकने योग्य, बड़ी कठिनाई से काले धब्बे उतारे जा सकें, ऐसा और दुष्परिकर्मतर है और कौन-सा वस्त्र जो सरलता से धोया जा सके, आसानी से जिसके दाग उतारे जा सकें तथा सुपरिकर्मतर है ? भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो कर्दमरंग से रंगा हुआ है, वही (वस्त्र) दुर्धोततर, दुर्वाम्यतर एवं दुष्परिकर्मतर है । 'हे गौतम ! इसी तरह नैरयिकों के पाप-कर्म गाढीकृत, चिक्कणीकृत, निधत्त किये हुए एवं निकाचित हैं, इसलिए वे सम्प्रगाढ वेदना को वेदते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं हैं तथा महापर्यवासन वाले भी नहीं हैं । अथवा जैसे कोई व्यक्ति जोरदार आवाज के साथ महाघोष करता हुआ लगातार जोरजोर से चोट मार कर एरण को कूटता पीटता हुआ भी उस एरण के स्थूल पुद्गलों को विनष्ट करने में समर्थ नहीं हो सकता; इसी प्रकार हे गौतम! नैरयिकों के पापकर्म गाढ़ किये हुए हैं;... यावत् इसलिए वे महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले नहीं हैं ।
( गौतमस्वामी ने पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर पूर्ण किया - ) 'भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो खंजन के रंग से रंगा हुआ है, वह वस्त्र सुधौततर, सुवाम्यतर और सुपरिकर्मतर है ।' हे गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म, मन्द विपाक वाले, सत्तारहित किए हुए, विपरिणाम वाले होते हैं । (इसलिए वे ) शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं । जितनी कुछ भी वेदना को वेदते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं ।'
हे गौतम! जैसे कोई पुरुष सूखे घास के पूले को धधकती अग्नि में डाल दे तो क्या वह सूखे घास का पूला धधकती आग में डालते ही शीघ्र जल उठता है ? हाँ भगवन् ! वह शीघ्र ही जल उठता है । हे गौतम ! इसी तरह श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं, यावत् वे श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं । ( अथवा ) जैसे कोई पुरुष अत्यन्त तपे हुए लोहे के तवे पर पानी की बूंद डाले तो वह यावत् शीघ्र ही विनष्ट हो जाती है, इसी प्रकार, हे गौतम! श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म भी शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं और वे यावत् महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं । इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि जो महावेदना वाला होता है, वह महानिर्जरा वाला होता है, यावत् वही श्रेष्ठ है जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ।
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