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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
वर्षशत का एक 'वर्षसहस्त्र' होता है । सौ वर्ष सहस्त्रों का एक 'वर्षशतसहस्त्र' होता है । चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है । चौरासी लाख पूर्वाग का एक 'पूर्व' होता है । ८४ लाख पूर्व का एक त्रुटितांग होता है और ८४ लाख त्रुटितांग का एक 'त्रुटित' होता है । इस प्रकार पहले की राशि को ८४ लाख से गुणा करने से उत्तरोत्तर राशियाँ बनती हैं । अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका । इस संख्या तक गणित है । यह गणित का विषय है । इसके बाद औपमिक काल है ।
भगवन् ! वह औपमिक (काल) क्या है ? गौतम ! दो प्रकार का है । पल्योपम और सागरोपम । भगवन् ! 'पल्योपम' तथा 'सागरोपम' क्या है ?
[ ३०८] ( हे गौतम ) जो सुतीक्ष्ण शस्त्रों द्वारा भी छेदा-भेदा न जा सके ऐसे परमाणु को सिद्ध भगवान् समस्त प्रमाणों का आदिभूत प्रमाण कहते हैं ।
[३०९] ऐसे अनन्त परमाणुपुद्गलों के समुदाय की समितियों के समागम से एक उच्छ्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य और अंगुल होता है । आठ उच्छ्रलक्ष्ण-श्लक्ष्णिका के मिलने से एक श्लक्ष्ण - श्लक्ष्णका होती है । आठ श्लक्ष्ण-श्लक्ष्णिका के मिलने से एक उर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु मिलने से एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं के मिलने से एक रथरेणु और आठ रथरेणुओं के मिलने से देवकुरु - उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है, तथा उस आठ बालाग्रों से हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । उस आठ बालाग्रों से हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । उस आठ बालाग्रों से पूर्वविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । पूर्वविदेह के मनुष्यों के आठ बालाग्रों से एक लिक्षा, आठ लिक्षा से एक यूका, आठ यूका से एक यवमध्य और आठ यवमध्य से एक अंगुल होता है । इस प्रकार के छह अंगुल का एक पाद, बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल का एक हाथ, अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि, छियानवे अंगुल का दण्ड, धनुप, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है । दो हजार धनुष का एक गाऊ होता है और चार गाऊ का एक योजन होता है । इस योजन
परिणाम से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा, तिगुणी से अधिक परिधि वाला एक पल्य हो, उस पल्य में एक दिन के उगे हुए, दो दिन के उगे हुए, तीन दिन के उगे हुए, और अधिक से अधिक सात दिन के उगे हुए करोड़ों बालाग्र किनारे तक ऐसे ठूंस-ठूंस कर भरे हों, इकट्ठे किये हों, अत्यन्त भरे हों, कि उन बालाग्रों को अग्नि न जला सके और हवा उन्हें उड़ा कर न ले जा सके; वे बालाग्र सड़े नहीं, न ही नष्ट हों, और न ही वे शीघ्र दुर्गन्धित हों । इसके पश्चात् उस पल्य में से सौ-सौ वर्ष में एक-एक बालाग्र को निकाला जाए । इस क्रम से तब तक निकाला जाए, जब तक कि वह पल्य क्षीण हो, नीरज हो, निर्मल हो, पूर्ण हो जाए, निर्लेप हो, अपहृत हो और विशुद्ध हो जाए । उतने काल को एक 'पल्योपमकाल' कहते हैं ।
[३१०] इस पल्योपम काल का जो परिमाण ऊपर बतलाया गया है, वैसे दस कोटाकोट पल्योपमों का एक सागरोपम कालपरिमाण होता है ।