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भगवती-७/-/७/३६३
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गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम द्वारा किन्हीं विपुल एवं भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ है । इसलिए वह भोगी भोगों का परित्याग करता हुआ ही महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है । भगवन् ! ऐसा अधोऽवधिक (नियत क्षेत्र का अवधिज्ञानी) मनुष्य, जो किसी देवलोक में उत्पन्न होने योग्य है, क्या वह क्षीणभोगी उत्थान यावत् पुरुषकारपराक्रम द्वारा विपुल एवं भोग्य लोगों को भोगने में समर्थ है । इसके विषय में छद्मस्थ के समान ही कथन जान लेना।
भगवन् ! ऐसा परमावधिक मनुष्य जो उसी भवग्रहण से सिद्ध होने वाला यावत् सर्वदुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह क्षीणभोगी यावत् भोगने योग्य विपुल भोगों को भोगने में समर्थ है ? (हे गौतम !) छद्मस्थ के समान समझना । भगवन् ! केवलज्ञानी मनुष्य भी, जो उसी भव में सिद्ध होने वाला है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह विपुल और भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ है ? इसका कथन भी परमावधिज्ञानी की तरह करना चाहिए यावत् वह महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है ।
[३६४] भगवन् ! ये जो असंज्ञी प्राणी हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक ये पांच तथा छठे कई त्रसकायिक जीव हैं, जो अन्ध हैं, मूढ़ हैं, तामस में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणरूप) तमःपटल और (मोहनीयरूप) मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण (अज्ञान रूप में) वेदना वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ गौतम ! जो ये असंज्ञी प्राणी हैं यावत...ये सब अकामनिकरण वेदना वेदते हैं, ऐसा कहा जा सकता है | भगवन ! क्या ऐसा होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण वेदना को वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते हैं । भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण वेदना को कैसे वेदते हैं ? गौतम ! जो जीव समर्थ होते हुए भी अन्धकार में दीपक के बिना रूपों को देखने में समर्थ नहीं होते, जो अवलोकन किये बिना सम्मुख रहे हुए रूपों को देख नहीं सकते, अवेक्षण किये बिना पीछे के भाग को नहीं देख सकते, अवलोकन किये बिना अगल-बगल के रूपों को नहीं देख सकते, आलोकन किये बिना ऊपर के रूपों को नहीं देख सकते और न आलोकन किये बिना नीचे के रूपों को देख सकते हैं, इसी प्रकार हे गौतम ! ये जीव समर्थ होते हुए भी अकामनिकरण वेदना वेदते हैं । भगवन् ! क्या ऐसा भी होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव प्रकामनिकरण (तीव्र इच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते हैं । भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव प्रकामनिकरण वेदना को किस प्रकार वेदते हैं ? गौतम ! जो समुद्र के पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पार रहे हुए रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं हैं और जो देवलोक में रहे हुए रूपों को देख नहीं सकते, हे गौतम ! वे समर्थ होते हुए भी प्रकामनिकरण वेदना को वेदते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । यह इसी प्रकार है ।
| शतक-७ उद्देशक-८ [३६५] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, अनन्त और शाश्वत अतीतकाल में केवल संयम द्वारा, केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य से तथा केवल अष्टप्रवचनमाताओं के पालन से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् उसने सर्व दुःखों का अन्त किया है ? गौतम ! यह अर्थ