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भगवती-७/-/२ ३४४
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वैमानिक पर्यन्त चावाय ही दण्डकों के विषय में कथन करना चाहिए कि वे जीव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है ।
|शतक-७ उद्देशक-३ [३४५] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव किस काल में सर्वाल्पाहारी होते और किस काल में सर्वमहाहारी होते हैं ? गौतम ! प्रावृट्-ऋतु (श्रावण और भाद्रपद मास) में तथा वर्षाऋतु (आश्विन और कार्तिक मास) में वनस्पतिकायिक जीव सर्वमहाहारी होते हैं । इसके पश्चात् शरदऋतु में, तदनन्तर हेमन्तऋतु में इसके बाद वसन्तऋतु में और तत्पश्चात् ग्रीष्मऋतु में वनस्पतिकायिक जीव क्रमशः अल्पाहारी होते हैं । ग्रीष्मकृतु में वे सर्वाल्पाहारी होते हैं ।
___ भगवन् ! यदि ग्रीष्मऋतु में वनस्पतिकायिक जीव सर्वाल्पाहारी होते है, तो बहुत-से वनस्पतिकायिक ग्रीष्मऋतु में पत्तोंवाले, फूलोंवाले, फलोंवाले, हरियाली से देदीप्यमान एवं श्री से अतीव सुशोभित कैसे होते हैं ? हे गौतम ! ग्रीष्मऋतु में बहुत-से उष्णयोनिवाले जीव और पुद्गल वनस्पतिकाय के रूप में उत्पन्न हो, विशेषरूप से उत्पन्न होते हैं, वृद्धि को प्राप्त होते हैं और विशेषरूप से वृद्धि को प्राप्त होते हैं । हे गौतम ! इस कारण ग्रीष्मऋतु में बहुत-से वनस्पतिकायिक पत्तोंवाले, फूलोंवाले, यावत् सुशोभित होते हैं ।
[३४६] भगवन् ! क्या वनस्पतिकायिक के मूल, निश्चय ही मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट, यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? हाँ, गौतम ! मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ।
भगवन् ! यदि मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, तो फिर भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार से आहार करते हैं और किस तरह से उसे परिणमाते हैं ? गौतम ! मूल, मूल के जीवों से व्याप्त हैं और वे पृथ्वी के जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं, इस तरह से वनस्पतिकायिक जीव आहार करते हैं और उसे परिणमाते हैं । इसी प्रकार कन्द, कन्द के जीवों के साथ स्पृष्ट होते हैं और मूल के जीवों से सम्बद्ध रहते हैं; इसी प्रकार यावत् बीज, बीज के जीवों से व्याप्त होते हैं और के फल के जीवों के साथ सम्बद्ध रहते हैं; इससे वे आहार करते और उसे परिणमाते हैं ।
[३४७] अब प्रश्न यह है 'भगवन् ! आलू मूला, श्रृंगबेर, हिरिली, सिरिली, सिस्सिरिली, किट्टिका, छिरिया, छीरविदारिका, वज्रकन्द, सूरणकन्द, खिलूड़ा, भद्रमोथा, पिंडहरिद्रा, रोहिणी, हुथीहू, थिरुगा, मुद्गकर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिहण्डी, मुसुण्ढी, ये और इसी प्रकार की जितनी भी दूसरी वनस्पतियाँ है, क्या वे सब अनन्तजीववाली और विविध (पृथक्-पृथक्) जीववाली हैं ? हाँ, गौतम ! आलू, मूला, यावत् मुसुण्ढी; ये और इसी प्रकार की जितनी भी दूसरी वनस्पतियाँ हैं, वे सब अनन्तजीव वाली और विविध (भिन्न-भिन्न) जीववाली हैं ।
[३४८] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला और नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ? हाँ, गौतम कदाचित् ऐसा होता है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ? गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से ऐसा कहा जाता है ।