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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[२७४] भगवन् ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण ।
भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के । मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के करण कहे गए हैं । एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार के करण होते हैं काय-करण और कर्म-करण । विकलेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार के करण होते हैं, यथावचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । भगवन् ! नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं अथवा अकरण से ? गौतम नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से वेदना नहीं वेदते । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक-जीवों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं, -मन-करण यावत् कर्म-करण । उनके ये चारों करण अशुभ होने से वे करण द्वारा असातावेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं । इस कारण से ऐसा कहा गया है कि नैरयिक जीव करण से असातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं ।
भगवन् ! असुरकुमार देव क्या करण से वेदना वेदते हैं, अथवा अकरण से ? गौतम ! असुरकुमार करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं । यथा-मन-करण, वचनकरण, काय-करण और कर्म-करण । असुरकुमारों के ये चारों करण शुभ होने से वे करण से सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं । इसी तरह यावत् स्तनितकुमार तक कहना ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के लिए भी इसी प्रकार प्रश्न है । गौतम ! (पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं ।) विशेष यह है कि इनके ये करण शुभाशुभ होने से ये करण द्वारा विविध प्रकार से वेदना वेदते हैं; किन्तु अकरण द्वारा नहीं ।
औदारिक शरीर वाले सभी जीव शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् सातावेदना कदाचित् असातावेदना) वेदते हैं । देव शुभकरण द्वारा सातावेदना वेदते हैं ।
[२७५] भगवन् ! जीव, (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कई जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कई जीव अल्पवेदना,और अल्पनिर्जरा वाले हैं ।
भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगारमहावेदना और महानिर्जरा वाला होता है । छठी-सातवीं नरक-पृथ्वीयों के नैरयिक जीव महावेदना वाले, किन्तु अल्पनिर्जरा वाले होते हैं । शैलेशी-अवस्था को प्राप्त अनगार अल्पवेदना
और महानिर्जरा वाले होते हैं और अनुत्तरौपपातिक देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
२७६] महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र, अधिकरणी, घास का पूला, लोहे का तवा या कड़ाह, करण और महावेदना वाले जीव; इतने विषयों का निरूपण इस प्रथम उद्देशक में किया गया है ।